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विवाह-होने तक ही बैखानस ब्रत का पालन करेगी अथवा यवज्जीवन ।4() पाणिनि ने कुमार श्रमणवादिभि:401 के श्रमणादिगण में पठित श्रमण, तापसी, प्रजिता शब्द का उल्लेख किया है, जिनका कुमार (कुमारी) शब्द के साथ तत्पुरूप समास का विधान किया गया है। कालिदास ने माल विकाग्निभित्र में पण्डिता कौशिकी का उल्लेख संन्यासी के रूप में किया है ।403 इस प्रकार हम देखते हैं कि समराइच्चकहा में हरिभद्र के अनुसार जैन श्रमण संघ की भाँति वैदिक तपस्वियों के आश्रम में भी स्त्रियों के प्रवेश का जो उल्लेख है वह वैदिक परम्परा का उपयुक्त विवरण है।
सांख्य दर्शन:-सांख्य दर्शन से सम्बन्धित जानकारी कुवलयमाला के दो-तीन प्रसंगों से मिलती है ।40+ दक्षिण भारत के मठ में उत्पत्ति, विनाश में रहित अवस्थित, नित्य, एक स्वाभावी पुरूष का तथा सुख-दुखानुभाव रूप प्रकृति विशेप (वैपम्यावस्था को प्राप्त प्रकृति) को बतलाते हुए सांख्य दर्शन का व्याख्यान हो रहा था। इस सन्दर्भ में उग्गाहीयइ क्रिय से ज्ञात होता कि सांख्य-दर्शन का व्याख्यान गाथाओं को गाकर किया जा रहा था सम्भव है, सांख्यकारिका की करिकायें गाकर समझाई जा रही हों आठवीं शताब्दी तक सांख्यकारिका निश्चित रूप से प्रसिद्ध हो चुकी थी। उसका चीनी अनुवाद इस समय किया जा चुका था, जो इस ग्रन्थ की प्रसिद्धि का द्योतक है।405 कुवलयमाला में धार्मिक आचार्यों के साथ कपिल का भी उल्लेख हुआ है।
गीता में सांख्य को ज्ञानयोग तथा सन्यासयोग नाम से भी वर्णन किया गया है। सांख्य नाम रखने का भी कारण हो सकता है कि इनमें गिने हुए पच्चीस तत्व माने गये हैं। सांख्य नामकरण का रहस्य एक विशिष्ट सिद्धान्त 'प्रकृतिपुरुषान्यताख्याति' में छिपा हुआ है; क्यों कि 'प्रकृतिपुरुषान्यताख्याति' या 'प्रकतिपुरुषविवेक' का ही दूसरा नाम 'सांख्या = सम्यक्, ख्याति = सम्यक ज्ञान = विवेकज्ञान' है। किसी वस्तु के विषय में तद्गत दोपों तथा गुणों की छानबीन करना भी 'सांख्य' कहलाता है। यथा
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