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जानकारी प्रस्तुत करता है। व्यापारी-मण्डल के इस प्रसंग का विस्तृत अध्ययन बुद्ध प्रकाश ने अपने लेख-‘एन एर्थ सेन्चुरी इन्डियन डाकुमेन्ट आन इन्टरनेशनल ट्रेड' में किया है।356
जैन कथा साहित्य के विवरण से ज्ञात होता है कि दक्षिण कोशल में विशिष्ट प्रकार के हाथी पाये जाते थे, किन्तु वहाँ घोड़े बहुत अच्छी जाति के नहीं होते थे। इसलिए जब बाहरी व्यापारी घोड़े लेकर वहाँ पहुँचे तो वहां के राजा ने गजपोतों (हाथियों के बच्चे) के बदले में घोड़े खरीद लिये। व्यापारी लोग दुहरे लाभ के लिए ऐसी सामग्रियाँ अपने साथ ले जाते थे जिससे उन्हे दोनों ओर से लाभ प्राप्त हो जाता था। उत्तरापथ को जाने वाले व्यापारी ने अपने साथ सुपारियाँ ली, जो कि उस क्षेत्र में नहीं होती थीं और वहाँ से उसने घोड़े खरीदे, जो उसके क्षेत्र में नही होते थे। एक व्यापारी बारवाई गया। समुद्री सतह पर वहाँ शख बहुतायत में और अच्छे प्रकार के प्राप्त होते थे, इसलिए वह वहाँ से शंख लाया। बारवइ की पहचान वी0 एस0 अग्रवाल ने वर्तमान कंराची के निकट स्थित बखरी कोन से की है जो प्राचीन काल में एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था ।357 एक अन्य व्यापारी पलाश पुष्प लेकर स्वर्णाद्वीप गया और वहाँ से स्वर्णभरकर ले आया। यदि यह स्वर्णद्वीप सुमात्रा है तो उद्योतन् के समय वहाँ श्री विजय का राज्य था। पलाश पुष्प आयुर्वेद के अनुसार अनेक प्रकार के उपचारों में काम आता है। सुमात्रा में इसकी अधिक मांग रही होगी। स्वर्णद्वीपसोनने के लिए प्रसिद्ध था ।358 गंगापटी चीनी श्वेतशिल्क है, जिसे भारत में चीनांशुक तथा गंगाजुल कहा जाता था तथा नेत्रपट रंगीन शिल्क के लिए नया नाम था ।359 इस संदर्भ से यह ज्ञात होता है कि भारत और चीन के बीच सामुद्रिक आवागमन में वृद्धि हो चली थी।360
जैन कथा साहित्य के विवरण से ज्ञात होता है कि उस समय समुद्री-यात्रा कितनी कठिन थी। सदैव प्राणों का भय बना रहता था। जिसे अपना जीवन प्रिय न हो वही रत्नद्वीप की यात्रा कर सकता था-सुंदरो जस्स जीयं ना वल्लहं-अहो दुग्गमं रयणदीयं ।361 जैन कथा साहित्य के विवरण से आयात-निर्यात की निम्न वस्तुओं का पता चलता है362. अश्व, गजपोत,
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