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छोड़ा उसकी पत्नी गर्भवती थी। जब उसका पुत्र बारह वर्ष का हो गया तथा उसने श्रेष्ठी के कार्यभार को सम्हाल लिया। तब उसकी पत्नी ने भी सन्यास की दीक्षा ग्रहण कर ली 51
दीक्षा संस्कार:-वासुदेव हिण्डी से प्राप्त संदर्भ के अनुसार जब राजकुमार मिगाद्धय ने अपना दृढ़ संकल्प सन्यास ग्रहण करने का व्यक्त किया तब मन्त्री जिसने धार्मिक प्रवचन राजकुमार के समक्ष दिया था तथा सन्यास की दीक्षा दिलवाने का उत्तरदायी था, राजकर्मचारियों को आदेश दिया कि उसके घर से सन्यास ग्रहण करने के निमित्त राजकुमार ने बालों को कटवा कर अपने शरीर के सभी आभूषणों को उत्तार दिया तो मन्त्री ने राजकुमार को एक झाडू और कटोरा दिया और कहा कि अबसे वह सिमांधर भिक्षु का शिष्य हो गया। इस घोषणा के पश्चात् उसने राजकुमार के समक्ष व्रतों का पाठ किया। जब राजकुमार मिगाद्धय के पिता को यह ज्ञात हुआ कि उसका पुत्र सन्यासी हो गया है तो उसने अपने पुत्र को समझाने का प्रयास किया कि वह राजमहल को लौट चले परन्तु राजकुमार अपने संकल्प पर दृढ़ रहा। राजकुमार को एक सौ आठ स्वर्ण, चाँदी और मिट्टी के घड़ो से स्नान कराया गया। राजकुमार ने वस्त्र पहनने के पश्चात् आभूषण पहने और विमान मण्डप में बैठे गया जो चमर से सुसज्जित था। जब राजकुमार दीक्षा लेकर नगर के बाहर एक बाग में जाने लगा तो मार्ग में उसके ऊपर पुष्पों की वर्षा की गई। राजकुमार के पिता जुलूस के साथ पैदल जा रहे थे। राजा के आदेश पर वस्त्र और आभूषण वितरित किये गए।52
जैन साधु समूहों में रहते थे। साधुओं के सम्पूर्ण समूह को संघ कहा जाता था।3
गण:4संघ के अन्तर्गत एक छोटा समूह होता था। तित्थयार के अधिकार के अन्तर्गत गण होते थे और उसे गणहर (गणधर) कहते थे। तित्थयार के मुख्य शिष्य को गणधर कहा जाता था। वासुदेव हिण्डी के कथन के अनुसार सम्मित के नेतृत्व में छत्तीस गणहर थे। सुहम्म जो पाँचवे गणहर थे उनके सम्बन्ध में कहा जाता है कि वे प्रवचन के लिए चम्पा के भ्रमण पर गये थे।55 एक नये दीक्षित साधु को शिष्य कहा जाता था तथा वह धर्माधिकारी-वर्ग क्रम में सबसे नीचे होता था। वरिष्ठता-क्रम में दूसरे स्थान पर संगढेर होते थे।
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