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आगे की गली की दुकानें पेय एवं खाद्य की दुकानें थीं । अन्त की दुकानों में अच्छी सुरा एवं मधुर मांस बिक रहा था ।-341
विपिणमार्ग के इस विस्तृत विवरण से स्पष्ट है कि स्थानीय बाजारों में आवश्यकता की लगभग सभी वस्तुयें उपलब्ध थीं । उद्योतन का यह कथन 'जो कुछ पृथ्वी पर सुना जाता है, देखा जाता है एवं हृदय में सोचा जाता है वह सब वहाँ बाजारों में उपलब्ध था । 342 प्रसाधन-सामग्री के स्टोर फालों की दुकानें, सराफा बाजार, शस्त्र - भण्डार, दवा की दुकान, जलपानगृह, मदिरालय, खटीक खानना आदि तत्कालीन बाजारों के प्रमुख विक्री के केन्द्र थे 1343
व्यावसायिक मण्डियाँ – स्थानीय व्यापार के दूसरे मुख्य के केन्द्र बड़ी-बड़ी मण्डियाँ होती थीं। जिनमें देश के विभिन्न भागों से व्यवसायी व्यापार के लिये भ्रमण करते थे । इन मण्डियों को पैंठास्थान भी कहा जाता था । पैंठास्थानों में व्यापारियों को सभी सुविधायें उपलब्ध थीं। विपिणमार्ग में जो व्यवसाय होता था वह नगर के बड़े व्यवसायियों एवं उनके पुत्रों के लिए पर्याप्त नही थी। वे अन्य व्यापारिक मण्डियों में जाकर अपनी व्यवसायिक बुद्धि द्वारा अपनी सम्पात्ति बढ़ाने का प्रयास करते थे । अतः विभिन्न व्यापारिक-मण्डियों की वणिकों द्वारा यात्रा करना प्राचीन भारत में सामान्य बात हो गई थी। इन यात्राओं से सांस्कृतिक सम्बन्धों में भी वृद्धि होती थी ।
कुवलयमाला में तक्षशिला के वणिक् पुत्र धनदेव द्वारा दक्षिणापथ में सोपारक मण्डी की यात्रा का विशद वर्णन है । 344 मायादित्य और स्थाणु भी दक्षिणापथ में प्रतिष्ठान मण्डी के लिए पूर्ण तैयारी के साथ निकले थे। इन प्रसंगों से व्यापारिक यात्रा की तैयारी के सम्बन्ध में निम्नोक्त जानकारी प्राप्त होती है:
1. धर्म एवं काम पुरूषार्थ को पूरा करने के निमित्त धन (अर्थ) कमाना प्रत्येक व्यक्ति के लिये आवश्यक था,345 2. अपने बाहुबल द्वारा अर्जित धन का सुख दूसरा ही होता है,