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सुपारी, मुक्ताफल, चमर, शंख, नेत्रपट, गंगापटी, अन्य-वस्त्र, गजदंत का सामान, मोती, पलाश पुष्प, स्वर्ण, महिष, नीलगाय, पुरूष, नीम के पत्ते एवं रत्न । प्राचीन भारतीय व्यापारिक क्षेत्र में सुगंधित द्रव्यों एवं वस्त्रों का निर्यात तथा स्वर्ण और रत्नों का आयात प्राय: होता रहता था।
बन्दरगाहः-कुवलयमाला में प्रसिद्ध तीन बन्दरगाहों का वर्णन प्राप्त होता है:-(1) सोपारक, (2) प्रतिष्ठान एवं (3) विजयपुरी
प्राचीन भारत में सोपारक नगर स्थानीय एवं विदेशी व्यापार का महत्वपूर्ण केन्द्र था। बृहत्कल्पमाष्य363 और पेरिप्लस364 के अनुसार यहाँ पर सुदूर देशों के व्यापारी आते थे। यह व्यापारियों का निवास स्थान था ।365 कुवलयमाला में यहाँ से रत्नद्वीप की समुद्री-यात्रा के प्रारम्भ होने का विस्तृत वर्णन है। प्रतिष्ठान का प्राचीन भारतीय व्यापार के क्षेत्र में प्रमुख स्थान था। वाराणसी के व्यापारी धन कमाने के लिए प्रतिष्ठान आते थे। यह नगरी धन-धान्य से समपन्न थी। इस बन्दरगाह में अनेक प्रकार के व्यवसाय होते थे, जिससे धन अर्जित किया
जाता था 366
उद्योतन ने दक्षिण भारत की एक प्रमुख मण्डी का उल्लेख किया है। दक्षिण समुद्र के किनारे जयश्री नाम की महानगरी थी। इस नगरी का विपणि मार्ग काफी समृद्ध था। व्यापारियों की दुकाने अलग थीं, रहने के निवास स्थान अलग थे। इस बन्दरगाह से यवनद्वीप की ओर जाने के लिए समुद्री-मार्ग था। जब सागरदत्त ने व्यापार करने के लिये समुद्र पार जाना चाहा तो जयश्री मण्डी के व्यापारी ने समुद्र-पार बिकने वाली वस्तुओं का संग्रह करना प्रारम्भ कर दिया और थोड़े ही दिनों के पश्चात निर्यात का माल तैयार हो गया ।367 सागरदत्त सात करोड़ की कीमत की वस्तुएँ-मरकतमणि, मोती, स्वर्ण, चाँदी आदि वहाँ लेकर वापस लौटता है ।368
विजयपुरी के सम्बन्ध में उद्योतन ने कुमार कुवलयचन्द्र के विजयपुरी पहुँचने के समय वहाँ की व्यापारिक नगर का सूक्षम वर्णन किया है। विजयपुरी नगरी मे प्रवेश करते ही कुमार
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