Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University
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159. वासुदेव हिण्डी, 161-62 । 160. तत्रैव, 132.। 161. तत्रैव, 1561 162. तत्रैव, 191 163. आठ प्रकार है| (1) ब्राहम (2) दैव (3) आर्ष (4) प्राजापत्य (5) आसुर (6) गांधर्व (7) राक्षस (8) __ पैशाच, मनुस्मृति 111, 29; याज्ञवल्क्य स्मृति 111, 58-61 (मनुस्मृति, 111, 20-44) 164. वासुदेव हिण्डी, 731 165. तत्रैव, 731 166. तत्रैव, 64-651 167. तत्रैव, 307-081 168. तत्रैव, 64-651 169. तत्रैव, 40, 80, 81, 78। 170. कृष्ण ने लक्खना, विनयवती और जंबवती का अपहरण किया । वासुदेव हिण्डी (प्र. खं.),78, 79 । 171. वासुदेव हिण्डी (प्र. खं.) 78 । 172. तत्रैव, 421 173. आगदत्त एक सारथी था। तत्रैव, 42 । 174. तत्रैव, 2121 175. तत्रैव, 181 । 176. तत्रैव, 98-100। 177. तत्रैव, 66 । 178. तत्रैव, 66, 78, 98-100, 116, 185, 264-65, 327-28, 364-65 । 179. तत्रैव, 314। 180. तत्रैव, 121, 1261 181. समराइच्च कहा, पृ. 895 । 182. समराइच्च, प्र.895, द्वितीय और सप्तमभव। 183. तत्रैव, पृ. 235 184. समराइच्च, पृ. 619 1 185. नाहं मिच्छादिट्ठिस्स धूयं देयिसासूणणंदाओ पउट्ठाओ भिक्खूणभत्तिं णव रे हन्ति- द. हा, पृ. 93 । 186. समराइच्च, पृ. 7191
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