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ओड्डा–कुवलयमाला में म्लेच्छ जातियों के अन्तर्गत ओड्डा का उल्लेख हुआ है102 | हुएनसांग ने ओड्र का उल्लेख करते हुये कहा है कि ये काले रंग के और असभ्य लोग थे तथा मध्य देश से भिन्न भाषा का प्रयोग करते थे103 ।
किक्कय-इसका उल्लेख जैन सूत्रों में आर्य क्षेत्रों के अन्तर्गत हुआ104 | किक्य का अर्धभाग ही आर्य था, शेष अनार्य । इसी अनार्य भाग के लोगों को उद्योतन ने म्लेच्छ कहा है। किक्कय नेपाल की सीमा पर श्रावस्ती के उत्तरपूर्व में स्थित था तथा उत्तर के केकय देश से यह भिन्न था105।
कुडक्खा -जैन सूत्रों में कुडुक्क का उल्लेख अनार्य देश के रुप में हुआ है। वहां के निवासी कुडक्खा कहे गये हैं। व्यवहारभाष्य में कुडुक्खाचार्य का भी उल्लेख है। जैन कुडक्क की पहचान आधुनिक कुर्ग से करते है106 ।
चंचुय-इनके निवास स्थान और जाति का ठीक पता नहीं है। जामखेडकर चंचुय जाति की पहचान दक्षिण भारत की आधुनिक चेन्चुओं से करते हैं107 ।
मुरुंड– कुवलयमाला में मुरुंड108 का उल्लेख म्लेच्छ जातियों के साथ हुआ है। बृहत्कथा में कहा गया है कि मुरुंड नाम का राजा कुसुमपुर में राज्य करता था109 ।
समुद्रगुप्त के इलाहाबाद के प्रस्तर लेख में कहा गया है कि उसने शक और मुरुंडों को हराया था10 । संभव है, गुप्त युग के बाद आठवीं श. में मुरुंड जाति का अस्तित्व न रहा हो। उद्योतन ने किसी प्राचीन परम्परा के आधार पर इनका उल्लेख कर दिया है111 ।
अन्त्यज-जातियां-कुवलयमाला में उल्लिखित चाण्डाल, डोंब, शौकारिक, मत्स्यबंधक डोम्बलिक, मातंग, बोक्कस, पंशुलि, भेरिया एवं पक्कण जातियों को अन्त्यज-जातियों के अन्तर्गत
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