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यद्यपि आठवीं शताब्दी में अन्त्यज जाति के लोगों की दशा अधिक अच्छी प्रतीत नहीं होती। किन्तु इसके पश्चात् उनमें भी सुधार होना प्रारम्भ हो गया। जिनेश्वर के कथाकोश प्रकरण126 एवं अलबरुनी के विवरण के अनुसार127 अन्त्यजों में से कुछ जातियों की श्रेणियां उनकी आर्थिक एवं सामाजिक दशा को उन्नत करने में सहयोगी थीं128 ।
कर्मकार जातियाँ:-उद्योतन सूरि ने कर्मकार जातियों में कुम्हार129, लुहार130, अहीर131, चारण132, काय133, इभ्य134, कप्पणिया135, मागध136 आदि का उल्लेख किया है।
___ आभीर:-सुवर्ण देवी प्रसूति के पश्चात एक गोष्ठ में जाकर किसी अहीर के घर में शरण लेती है, जहाँ अहीरिन उसको पुत्री समान समझ कर सेवा करती है ।137 आभीर एक ऐसी जाति का नाम, जिसका मूल पेशा गौपालन था। ईसा की तीसरी शताब्दी तक आभीरों ने अपना प्रमुख स्थान बना लिया था138 । कुवलय माला में अहीर के निवास स्थान को गोष्ठ कहा गया है।139
चारण:-गांव-गांव में जाकर अपनी जीविका कमाने वाली जाति थी। सम्भवत: इनका कार्य प्रशस्तियाँ आदि गाना था। राजस्थान में आज भी चारण जाति के लोग पाये जाते हैं।
काय-को उद्योतन ने अनार्य कहा है। यदि इसका सम्बन्ध कायस्थ से है तो वेदव्यास ने भी कायस्थों को शूद्रों में गिना है140 । आठवीं शताब्दी में कायस्थ शब्द कर्मचारी के लिए प्रयुक्त होता था।41 |
इभ्यः:- वाणिकों का समृद्ध समुदाय है।142 ‘प्रज्ञायपना' में आर्यों की जाति के अन्तर्गत इभ्य जातियाँ गिनाई गयी है143 ।
कप्पणिया:-सम्भवत: कपड़े के व्यापारी को कहा गया है, जिससे आजकल कापणिया प्रचलित है। जैनागमों इसे कप्पासिय, कपास का व्यापारी कहा गया है।144
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