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वाले ब्राह्मण को महान् की उपाधि प्रदान की गई थी।15 वासुदेव हिण्डी के अनुसार ब्राह्मण दण्ड से मुक्त नहीं थे। राजा नालपुत्र ने अपने ब्राह्मण पुरोहित को एक महिला की लाल गरम प्रतिमा का आलिंगन करने का दण्ड दिया क्योंकि वह एक व्यवसायी की पत्नी की ओर कामुक हो गया था16 ब्राह्मण संदेशवाहक और पुरोहित का कार्य भी करते थे17।
___ उद्योतन सूरि ने ब्राह्मणों का उल्लेख इस प्रकार से किया है: राजा दृढ़-वर्मा के दरबार में स्वस्तिक पढ़ने वाला ब्रह्मा सदृश महाब्राह्मणतथा शुक्र सदृश महापुरोहित उपस्थित रहते थे19 । राजा ने देवी से वर प्राप्त कर विप्रजनों को दक्षिणा दी (दक्खि ऊण विप्पयणं) कुवलयचन्द्र के जन्म-नक्षत्र और ग्रहों को देखने के लिये सम्बत्सर को बुलाया गया, जिसे दक्षिणा में सात हजार रूपये दिये गये। चंडसोम, जन्म-दरिद्री सुशर्म देव द्विज का पुत्र था। यौवन-सम्पन्न होने पर उसका विवाह ब्राह्मण कुल (बंभण कुलाण) की कन्या से कर दिया गया। चंडसोम, ब्राह्मणों की वृत्ति करते हुये (कयाणियो-विन्ती) उसका पालन करने लगा। चंडसोम अपने भाई एवं बहिन की हत्या कर देने के कारण जब आत्मघात करने लगा तो अनेक शास्त्रों के ज्ञाता पंडितों (सेन्तिय-पंडिएहिं) ने उसे प्रायश्चित करने के लिये कहा।
किसी ने कहा कि ब्राह्मणों को स्वयं समर्पित कर देने से शुद्ध हो जाओगे20 । दूसरे ने सुझाव दिया कि अपनी पूरी सम्पति ब्राह्मणों का दानकर (सयलं घर-सव्वस्सं वंभणार्ण दाऊण) गंगास्नान को चले जाओं।
अन्य प्रसंगों में ब्राहमणों का वर्णन इस प्रकार है:-धनदेव के पिता ने उसे ब्राह्मणों को दक्षिणा देने को कहा (दक्खेसु बंभणे)। समुद्रयात्रा प्रारम्भ करते समय ब्राह्मणों ने आशीर्षे पढी (पढ़ति बंभण-कुलाई आसीसा)। समुद्री तूफान के समय व्यापारियों ने ब्राहमण-भोज (बंभणाणं भोयणं) करने का वचन दिया। कोसाम्बी नगरी में शाम होते ही ब्राह्मणों के घरों में गायत्री जप होने लगा तथा ब्राहमण शालाओं में जोर से वेद का पाठ होने लगा। चिन्तामणि-पल्ली में चिलातों के लिये ब्राह्मणों का वध करना दूध में विष पिलाये जाने के सदृश था21 ।
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