Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 17
________________ ( १५ ) बहुत सीमा तक स्पष्ट कर देता है । मेरी सत्ता-या यों कहूं कि आत्मा की सत्ता स्वतः सिद्ध है, उसके लिये किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं है । इसमें भी किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं कि आत्मा को या मुझे ज्ञान होता है, पदार्थों का बोध होता है। और न इस विषय में किसी को सन्देह हो सकता है कि वह अानन्द की प्राप्ति के लिये ही निरन्तर प्रयत्नशील है। यह बात दूसरी है कि वह किस चीज में आनन्द माने किन्तु आनन्द की उत्कट इच्छा सब में है।

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