Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 92
________________ (६२ ) वह यह कहना चाहती है कि सुख दुख भगवान के अधीन हैं। व्यक्ति अपने आपको भगवान् के आगे पूर्णतः समर्पित कर दे, सुख का यही एकमात्र मार्ग है। किन्तु इस भक्तिभाव या ईश्वरवाद का भी यदि हम पूर्णतः खण्डन करेंगे, तो ऐसा प्रतीत होगा कि अनेकान्त की मूल आत्मा का हनन हो रहा है। जैनाचार्यों ने ऐसा किया भी नहीं। उन्होंने भक्ति भाव से भरे हुए अद्भुत स्तोत्रों का निर्माण किया। और इस प्रकार जैन परम्परा को भक्ति की रसधारा से शुष्क होने से बचाया । प्राणी को अनन्त काल से परावलम्बन की आदत है जो अकस्मात् नहीं छूट सकती। यदि औपचारिक रूप से परावलम्बन अस्थायी रूप से ग्रहण किया जाए तो भी वह साधन स्वावलम्बन का ही होना चाहिये।

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