Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 102
________________ अर्थ ही है जागरूकता। जागरूकता का अर्थ ही है अप्रमाद / और अप्रमाद का अर्थ ही है अमूर्छा / अमूर्छा का अर्थ ही है ब्रह्मस्थिति / और ब्रह्मस्थिति का अर्थ है स्वस्थिति जो सच्चा स्वास्थ्य है। जहाँ परपदार्थ की अपेक्षा नहीं है / स्तेय का प्रश्न ही नहीं उठता। इस प्रकार धर्म के जो भी अंग हैं, वे जीवन धर्म हैं, वे जीवन में जीने के लिये हैं, उनके कोरे अध्ययन का कोई अर्थ नहीं है। उन पर चिन्तन का कोई अर्थ नहीं है / उन्हें व्यावहारिक जीवन में जीना ही उनका अध्ययन है। यही उनका मनन है / यही चिन्तन है। शाखा FTEPSETTESजीगर जी शमलाकरगंजक शाम जानकीनारामा

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