Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 25
________________ ( २४ ) तक लक्ष्य प्राप्त नहीं होता, उसे केवल उन्हीं कर्मों में लगना है जो उसे लक्ष्य के निकट ले जाएं, न कि लक्ष्य से दूर हटायें। यदि गति का उदाहरण दें तो जिस व्यक्ति को गन्तव्य का ज्ञान ही नहीं, उसकी हर गति गलत मानी जाएगी यानी उसकी दृष्टि से अच्छी और बुरी गति में भेद नहीं किया जा सकता और वह व्यक्ति जो गन्तव्य पर पहुँच चुका है, अच्छी गति और बुरी गति में इसलिये भेद नहीं करेगा कि उसमें अब गति की आवश्यकता ही नहीं रह गई है। किन्तु मार्ग में स्थित व्यक्ति के लिये गति की दिशा और गति की पद्धति महत्त्वपूर्ण है । म

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