Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 75
________________ २० पुरुष : अपना भाग्यनिर्माता जैन धर्म का यह वास्तविक सन्देश नहीं है कि भाग्य ही सब कुछ है। उसका वास्तविक सन्देश यह है कि मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है और निर्माता हमेशा अपनी कृति से बड़ा होता है अतः वह अपने भाग्य को बदल भी सकता है । जैन धर्म का वास्तविक सन्देश व्यक्ति की स्वतन्त्रता है। समय का प्रभाव, प्रकृति, परिस्थिति, पूर्वकर्म, जन्म-ये सब गौरण हैं, व्यक्ति प्रधान है। जो व्यक्ति अपनी आन्तरिक शक्ति पर विश्वास खो देता है, उसे ये बाह्य परिस्थितियाँ दबोच लेती हैं। जिस प्रकार मकड़ी अपने पैदा किये हुए जाले में स्वयं ही फंस जाती है, उसी प्रकार व्यक्ति अपनी ही पैदा की हुई परिस्थितियों में स्वयं फंस जाता है और जिस प्रकार वह मकड़ी अपने फैलाये हुए जाल को स्वयं ही समेट सकती है, उसी प्रकार व्यक्ति भी अपनी फैलायी हुई परिस्थितियों का स्वयं ही अन्त कर सकता है। यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि हमें परिस्थिति से व्यक्ति की मुक्ति का प्रश्न सोचना है। परिस्थितियों के परिवर्तन करने के प्रश्न पर विचार नहीं करना है। हमें एक विशेष प्रकार की परिस्थितियां मिली हैं और हम यह समझते हैं कि यदि हमारी ये परिस्थितियां बदल कर अमुक प्रकार की हो जाएँ तो हमें सुख हो सकता है। हम सदा परिस्थितियों में परिवर्तन की बात सोचते हैं, उनसे छुटकारे की बात नहीं सोचते । और जब हम एक विशेष प्रकार की परिस्थिति को भाग्यवश या अपने पुरुषार्थ से दूर करके एक नयी परिस्थिति पैदा कर लेते हैं तब हमें यह लगता है कि यह वर्तमान परिस्थिति भी हमें उसी प्रकार उन्मुक्त नहीं होने दे रही, जिस प्रकार पहली परिस्थितियाँ हमें नहीं छोड़ रहीं थीं । और तब हमें यह लगता है कि हमने गलती की, हमें ये परिस्थितियां नहीं अमुक परिस्थितियां उत्पन्न करनी चाहिएँ और जब वे अभीष्ट परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, तब हम समझते हैं कि हमने फिर गलती की। और इस

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