Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 81
________________ २९ भौतिकवाद : यदृच्छावाद एक दूसरा सम्प्रदाय है जिसे हम यहच्छावाद कह सकते हैं, जिसे आधुनिक युग में आकस्मिकवाद भी कहा जाता है। मनुष्य का सारा चिन्तन इस मूल तथ्य पर आधारित है कि प्रत्येक कार्य का कोई कारण होता है। किन्तु यदृच्छावाद इस कार्यकारण के मूलसिद्धान्त पर ही कुठाराघात करता है। वह यह मानता है कि प्रत्येक कार्य आकस्मिक होता है, उसका कारण नहीं होता। यदि एक कार्य का एक कारण मान भी लें तो फिर उस कारण का एक दूसरा कारण मानना होगा और दूसरे कारण का तीसरा कारण । इस प्रकार अनवस्था हो जाएगी। इस परम्परा का कोई अन्त न होगा। अतः यह ठीक होगा कि हम इस परम्परा में जाकर कहीं और रुकने की अपेक्षा स्वयं कार्य पर ही रुक जाएँ और उसके कारण की खोज न करें। ए यहच्छावादियों की यह युक्ति वस्तुतः अधूरी है। वे भी यदृच्छावाद को ऐसे ही स्थान पर प्रयुक्त करते हैं जहां कारण या तो संदिग्ध होता है या परोक्ष होता है। क्योंकि ऐसे प्रत्यक्ष विषयों में जैसे कि भोजन खा लेने से भूख शान्त हो जाती है, कोई भी व्यक्ति यह नहीं मानेगा कि कारण-कार्य सम्बन्ध नहीं है। किन्तु हमारे जीवन की बहुत सी घटनाओं के कारण परोक्ष रहते हैं । हममें से किसी भी व्यक्ति के साथ सड़क पर चलते हुए दुर्घटना हो सकती है, अंगभंग हो सकता है और तब ऐसी जगह उसका कारण खोजना कठिन हो जाएगा। ऐसी घटनाओं को हम आकस्मिक कह डालते हैं। हमने पहले भी कहा कि एक ऐसी भी स्थिति आती है जहां कारण का खोजना कठिन हो जाता है। जब हम किसी पदार्थ के मौलिक स्वभाव का कारण ढूंढ़ना चाहते हैं तो हमें यह लगता है कि उसका कारण नहीं ढूंढा जा सकता। यहां आकर तर्क रुक जाता है। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि संसार में कोई कारण-कार्य-परम्परा ही नहीं है। वस्तुतः समस्त विज्ञान और दर्शन उन स्थलों का जहां कार्य-कारणपरम्परा स्पष्ट नहीं है, उसे खोज निकालने का ही प्रयास है। दर्शन और विज्ञान ज्ञात से अज्ञात कारण को खोजना चाहते हैं। विज्ञान भौतिक जगत् में इस

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