Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 88
________________ ( 55 ) नुसार घुमाता है । हमें सब कर्मफल उसे ही सौंप देने हैं।' किन्तु इसके साथ ही साथ गीता में सदाचार के पालन के लिए पूरा बल दिया गया है और इस प्रकार ईश्वर धर्माचरण के लिए एक सहायक और आवश्यक तत्त्व माना गया है । स्वतः सिद्ध माना गया है । ईसाइयों में बाइबल में ईश्वर की सत्ता को इसमें किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं मानी गई। हमें एक ही ईश्वर की उपासना करनी है, अन्य देवी देवताओं की उपासना नहीं करनी । ईश्वर एक है । वह आत्मा है, पवित्र है, न्यायशील है, ४ दयालु है, और क्षमावान् है । वह छोटे से छोटे प्रारणी का ध्यान रखता है । ईसामसीह जो कि उसके पुत्र हैं, अपने पिता को किसी अन्य मनुष्य की अपेक्षा अधिक अच्छीप्रकार से जानते हैं। इस प्रकार ईश्वर, ईसा मसीह और आत्मा मिलकर ईसाई मत के पवित्र त को पूर्ण करते हैं । परमात्मा मूल स्रोत है ईसा मसीह मध्यवर्ती शक्ति है और आत्मा उस शक्ति को प्रयोग में लाने वाली है और देवी कार्य ईसा मसीह के माध्यम से ही परमात्मा का कार्य आत्मा के द्वारा सम्पन्न हुआ समझना चाहिए । ७ स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म में परमात्मा का जो स्वरूप है, उसमें कोई मौलिक भेद नहीं है। दोनों ही धर्मों में वह सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान्, सर्वव्यापक, न्यायशील, दयालु और सर्वोपरि है । ईसाई धर्म में जो महत्त्व ईसा मसीह का है, हिन्दू धर्म में उसका स्थान कभी गुरु को दिया जा सकता है, और कभी किसी इष्टदेव को । ईसाई धर्म में ईश्वर के अतिरिक्त जो अन्य किसी देवता की उपासना का निषेध है, वह भी हमें आर्यसमाज की परम्परा में मिलता है । इस्लाम में ईश्वर की एकता पर और भी अधिक बल दिया गया है। ईसाई धर्म में जिस त को माना गया है, उसका खण्डन इस्लाम में इस रूप में किया १. गीता, १८.६१. २. मार्के, १२.२६. ३. जॉन, ४.२४. ४. जॉन, १७.११, २५. ५. मैथ्यू, ६.३०. ६. मैथ्यू, ११.२७. ७. Hastings, James, Encyclopaedia of Religion and Ethics, Vol. VI, पृ० २६१.

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