Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 47
________________ ( ४६ ) आई तब-तब समझदार लोगों ने इसकी तरफ समाज का ध्यान आकृष्ट किया। किन्तु ज्ञान और कर्म का विरोधाभास मिटा नहीं। आज स्वयं जैन धर्म में भी दोनों में से किसी एक पक्ष को लेकर विवाद करने वाले गुट और व्यक्ति मिल जाएँगे। किन्तु इस विषय को केवल शाब्दिक विवाद का विषय बनाया जा सकता है। मन में हम सब यह जान सकते हैं कि सच्चाई क्या है। ज्ञान और कर्म का या ज्ञान और चरित्र का यह समन्वय एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया होनी चाहिए जिस प्रकार मूल से फूल जुड़ा रहता है। मूल को अलग काटकर और फूल को अलग तोड़कर फिर उन दोनों को जोड़ कर एक जीवित पौधा नहीं बनाया जा सकता। यह गणित का प्रश्न नहीं है जिसमें समन्वय का अर्थ यह हो कि दो और दो को जोड़ कर चार बनाना है। यह जीवन का प्रश्न है और यहाँ कोई भी समन्वय एक सहज स्वाभाविक अनिवार्यता होनी चाहिए। जहाँ भी कृत्रिमता होगी, वहाँ धर्म दूर हट जाएगा। * ज्ञान और चारित्र्य के साथ ही साथ जैन दर्शन ने एक दूसरा गुण भी अनिवार्य माना और वह है हमारा दृष्टिकोण, हमारा लक्ष्यविन्दु । ज्ञान और चारित्र्य हमें गति देते हैं पर दिशा नहीं देते। और हम जानते हैं कि दिशा गति से किसी भी दशा में कम महत्वपूर्ण नहीं है। वस्तुतः यात्रा का प्रारम्भ दिशा-निश्चय से होता है, गति से नहीं होता। और बिना दिशा निश्चित किये जो हमारी गति होती है, उसे हम यात्रा नहीं कह सकते। हमारी वास्तविक यात्रा तभी प्रारम्भ होती है जब हमें दिशा का ज्ञान हो जाता है। दिशा का ज्ञान होने के पश्चात् हमारी गति का वेग उतना महत्वपूर्ण नहीं रहता। एक ऐसा व्यक्ति जिसने मद्यपान छोड़ना प्रारम्भ किया है और कल तक एक पाव शराब पीता था, आज तीन छटांक शराब पी रहा है उस व्यक्ति की अपेक्षा जो शराब की मात्रा बढ़ा रहा है और जो कल तक आधा पाव शराब पीता था, आज ढाई छटांक शराब पीता है अच्छा है। हमारी गति का वेग, हमारी साधना का परिमाण, यह सब तभी महत्व रखते हैं, जब हमारी दिशा ठीक है । इस प्रकार दर्शन, ज्ञान और चारित्र्य के तीन रत्न बनकर, हमारी स्वतन्त्रता का, हमारी मुक्ति का मार्ग बनते हैं । यह कोई पारिभाषिक शब्दों में समझाने की आवश्यकता नहीं है किन्तु एक सहज बुद्धिगम्य विषय है कि इन तीनों में से यदि किसी एक भी तत्त्व का अभाव है तो 'मार्ग अधूरा है' इतना कहना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि सच्चाई यह होगी कि वह मार्ग ही नहीं है। १. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:-तत्त्वार्थसूत्र १.१.

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