Book Title: Jain Jivan Darshan ki Prushtabhumi
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Ranvir Kendriya Sanskrit Vidyapith Jammu

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Page 59
________________ १७ कालवाद : कालजयी परिस्थितिवाद के अन्तर्गत पाँच विकल्प हैं-काल, स्वभाव, नियति, यच्छा और भूत । ये पाँचों ही व्यक्ति का स्वरूप नहीं हैं, बाह्य परिस्थितियाँ हैं, पर व्यक्ति के अपने स्वरूप को प्रभावित अवश्य करती हैं इसलिए प्रशिक रूप में इन सबकी ही महत्ता को स्वीकार करना होगा । १२ इतिहास के प्रारम्भ से ही काल को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है । जगत् के समस्त परिवर्तन में अन्ततः काल भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है । प्रथर्ववेद ने कहा, "वही त्रिलोक को धारण करता है, वही समस्त भुवनों को घेरे हुए हैं, उससे बढ़कर दूसरा तेज नहीं है ।' यह काल की महत्ता है जिसे गोम्मटसार ने निम्न शब्दों में प्रकट किया, "काल सबका सृजन करता है, काल सब का नाश कर देता है, सुप्त लोगों में काल ही जागृत है, प्रवचन नहीं कर सकता ।" 3 स्पष्ट है कि समय ही व्यक्ति असमर्थ बना देता है । बड़े-बड़े राज्य और उनके अधिपति जिनके तेज का कोई पारावार नहीं था, काल के अगाध गर्त्त में ऐसे विलीन हुए कि उनका नाम भी शेष नहीं रहा । समय हमारे बड़े से बड़े घावों को भर देता है, हमारे बहुत से कार्य और चिन्तन समय के साथ चलते हैं । यह बहुत कुछ देखने में आता है कि कोई विशेष समय किसी विशेष कार्य के लिए उत्तरदायी होता है और उपयुक्त या अनुपयुक्त होता है। हम जानते हैं कि कुछ कार्य प्रातःकाल ही प्रीतिकर लगते हैं और कुछ सायंकाल में। कुछ कार्य बाल्यकाल में ही आनन्द दे पाते हैं कुछ युवावस्था में और कुछ वृद्धावस्था में ही रोचक लगते हैं। यह १. २. कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्याः -श्वेताश्वतरोपनिषद्, १.१२. स एव सं भुवनान्याभरत् स एव सं भुवनानि पर्येत् तस्माद् वै नान्यत् परमस्ति तेजः - अथर्ववेद, औंध, १६.५३.४. ३. गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, ८७६. काल का कोई को समर्थ और

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