________________
स्वभाववाद : प्रकृतिवादी
एक दूसरा गुट स्वभाववादियों का है जिनका कहना है कि सभी का कारण उन पदार्थों का सहज स्वभाव है और प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वभावानुकूल ही कार्य करता है। एक प्रकार से देखें तो यह मत बहुत सीमा तक सत्य है किन्तु दूसरी ओर इस मत के अनुसरण से शैथिल्य आ जाने की भी पूरी संभावना है। स्वभाव का ठीक-ठीक अर्थ भी जानना बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जैसा हमने प्रारम्भ में विस्तारपूर्वक प्रतिपादन किया है इसकी बहुत अधिक सम्भावना रहती है कि हम विभाव को ही स्वभाव मान बैठे। यदि स्वभाव का अर्थ यह विकृत स्वभाव लिया जाय, तब तो यह परिणाम होगा कि एक चोर चोरी को, शराबी शराब पीने को अपना स्वभाव बतलायेगा। स्वभाववादियों की ओर से जो तर्क गोम्मटसार में दिया गया है, वह यह है कि यदि प्रत्येक पदार्थ का कारण स्वभाव नहीं है तो कंटकों को तीक्ष्ण कौन बनाता है और हिरणों में और पक्षियों में रंग की विविधता कौन पैदा कर देता है ? यह उदाहरण बहुत विचित्र है क्योंकि यहां जो दो उदाहरण दिये गये हैं, वे मनुष्य जीवन के नहीं हैं, उनमें से एक पक्षी जीवन से लिया गया है और दूसरा वनस्पति जीवन से। इन उदाहरणों से ऐसा आभास होता है कि शायद ये स्वभाववादी आज के पश्चिम में चल रहे प्रकृतिवादियों से मिलते जुलते होंगे । ये प्रकृतिवादी आज मनुष्य जीवन के पतन का कारण यह मानते हैं कि हम प्रकृति से दूर हट गये हैं। वे समाज के समस्त बन्धनों को तोड़ना चाहते हैं। उनमें से कुछ इतने अतिवादी हैं कि वे मनुष्य के वस्त्र पहनने तक के विरोधी हैं और नग्न रहने का प्रतिपादन करते हैं। वे यह मानते हैं कि मनुष्य ने जो कुछ भी प्रगति, सभ्यता या संस्कृति के क्षेत्र में की है, वह उसका विकास नहीं है, ह्रास ही है। - इन प्रकृतिवादियों की जीवनचर्या पर ध्यान दें तो यह स्पष्ट हो जाएगा,
१. को करइ कंटयाणं तिक्खत्तं मियविहंगमादीणं । विविहत्तं तु सहामो इति संव्वपि य सहामोत्ति ।।
-गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, ८८३.