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( ४३ ) चिड़चिड़ापन । दूसरा यह परिणाम सम्भव हो सकता है कि हम जीवन के सुखभोगों को तो छोड़ दें किन्तु हमारा यह त्याग केवल ऊपरी हो। मन से विषयभोगों का रस नहीं जाए। और इस स्थिति में हमारा त्याग एक पाखण्ड मात्र रह जाता है। तीसरा एक यह भी विकल्प सम्भव है कि हम विषयभोगों को इस आशा में छोड़ दें कि हमें इनके त्याग के बदले में भविष्य में परलोक में या आगामी आने वाले जीवनों में इससे अनन्त गुणा सुख प्राप्त होगा और इस प्रकार हम वर्तमान में जीवित न रहकर भविष्य की कल्पनाओं में खोये रहें।