Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्राक्कथन
भारतीय नाघना, सहनधारा तीर्घ है। माधना का जो दिराट् पर व्यापक रूप यहा मिलता है. पैसा अन्यत्र यहा मिलेगा ' भारतीय जीवन । हर सांस, साधना का साम होता है, हर नरम, माधना का परण होता है, हर सप, सापना का रूप होता है, यही कारण है कि भारत का, पायक्तिगत जीवन हो या पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीयन हो, या जागिर जीपन, मयंत्र जीवनधाग मे मापना की उमिया लगती है, साधना मा स्वर मुरारित होता रहता है, लगता है भारतीय जीवन माधना लिएको अस्तिव में है।
तप, भारतीय साधना पा पाप है। जिन प्रसार और जया जीरन के सान्नित्य पा पोय, मीनार नाम भी कर स्तिस्य का बोध मसता या प्राध्यामिण मा पनि गा, महिमा पा, गाय मा माई मिलापता गाना , नही। गौनिए पापा से गान मानोर - -
नाममा सपो' गा, मार को निको
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