Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 58
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/५६ . जिसप्रकार सम्यग्दर्शन होने से पूर्व उसकी तैयारी में भी जीव को कोई नवीन आत्मिक आह्लाद जागृत होता है और नई भनक आती है, उसीप्रकार वैशाली में प्रभुजन्म से पूर्व चारों ओर नूतन आनन्द का वातावरण छा गया था। देवकुमारियाँ त्रिशला माता की सेवा करती हैं, नित्य नवीन आनन्दकारी चर्चा करती हैं। एकबार माताजी को विचार आया कि आज मैं देवियों से प्रश्न पूछकर उनके तत्त्वज्ञान की परीक्षा करूँ। देवियाँ भी कोई साधारण नहीं थीं, परन्तु जिनभक्त थीं; वे माता की बात सुनकर प्रसन्न हुईं....और मानों माताजी के मुख से फूल झर रहे हों। तद्नुसार एक के पश्चात् एक प्रश्न पूछने लगी....और देवियाँ भी झट-झट उत्तर देने लगीं। तत्त्वरस से भरपूर उस चर्चा के आनन्द का रसास्वादन आप भी कीजिए - सर्वप्रथम माताजी ने पूछा – ‘जगत में सबसे सुन्दर वस्तु कौन ? देवी ने कहा - 'शुद्धात्मतत्त्व'। माता ने पूछा – आत्मा का लक्षण क्या ? देवी ने कहा - चैतन्यभाव। धर्मी का चिह्न क्या ? शान्तभावरूप ज्ञानचेतना ! उत्तम सदाचार क्या ? वीतरागभाव। पापी कौन ? जो देव-गुरु-धर्म की निन्दा करे वह। पुण्य-पाप रहित जीव कहाँ जाता है ? मोक्ष में। वीर कौन ? जो वीतरागता धारण करे वह। जिन कौन ? जो मोह को जीते वह। संतोषी कौन ? जो स्व में तृप्त रहे वह। विवेकी कौन ? जो जिन-आज्ञा का पालन करे वह। शूरवीर कौन ? जो शत्रु को भी क्षमा करे वह। मूर्ख कौन ? जो मनुष्य भवा पाकर भी आत्महित न करे वह।। Real L eau al सर्वश्रेष्ठ कौन ? जो सबको जाने वह। मुमुक्षु कौन ? जो मोक्ष का ही उद्यम करता हो वह। Meam JEANINE -

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