Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/५६ चैत्रशुक्ला त्रयोदशी के मंगल-दिन वैशाली-कुण्डग्राम में भगवान महावीर का अवतार हुआ। उस काल (ईस्वी सन् पूर्व ५६८ वर्ष, तारीख २८ मार्च सोमवार को) समस्त ग्रह सर्वोच्च स्थान में थे। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार
| १२N के१० मं ) ऐसा उत्तमयोग १० कोड़ाकोड़ी सागरोपम में २४ बार ही आता है - रवि१ बु. X .
और वीरप्रभु की यह जन्मकुण्डली उनका बालब्रह्मचारीपना सूचित करती है।
तीर्थंकर का अवतार होते ही तीनों लोक आश्चर्यकारी आनन्द से खलबला उठे। इन्द्र ऐरावत हाथी लेकर जन्मोत्सव मनाने आ पहुँचा। एक देवपर्याय में असंख्य तीर्थंकरों का जन्माभिषेक करनेवाले इन्द्र पुन: पुन: जन्माभिषेक के अवसर पर किसी नूतन आह्लाद का अनुभव करते हैं। भक्ति भावना से प्रेरित होकर वह सौधर्म इन्द्र स्वयं एक होने पर भी अनेक रूप धारण करके जन्मोत्सव मनाने हेतु तत्पर हुए; जिसप्रकार मोक्ष का साधक आत्मा स्वयं ‘एक' होने पर भी सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र द्वारा अनेकरूपों को धारण करता हुआ मोक्ष साधने को तत्पर होता है।
शचि इन्द्राणी के भी हर्ष का पार नहीं है। जिन्हें बाल-तीर्थंकर को गोद में लेने की प्रबल उत्कण्ठा है - ऐसी वे इन्द्राणी कुण्डपुरी में प्रवेश करके तुरन्त 'जिनमन्दिर' में गई। (सिद्धार्थ राजा के 'नंद्यावर्त' नामक राजप्रसाद में 'द्रव्यजिन' का अवतार हुआ और वे 'द्रव्यजिन' वहाँ विराजमान होने से पुराणकारों ने उस राजमहल को भी जिन-मन्दिर' कहा है।) वहाँप्रवेश करके बाल-तीर्थंकर का मुख
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