Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 94
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/६२ स्वभावधर्म उस अनुभूति के अन्तर्गत् वेदन में आते हैं इसलिये वह अनेकान्त स्वरूप है, उस शुद्ध परिणतिरूप से परिणमता आत्मा अपने एकत्व स्वरूप में शोभायमान है। चन्दना- वाह दीदी ! आपने बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया। स्वानुभूति में पर के सम्बन्ध रहित अर्थात् विभक्त आत्मा अकेला वेदन में आता है इसलिये उसे एकत्व की अनुभूति कहा गया, परन्तु उस एकत्व में भी गुण-पर्याय तो वर्तते ही हैं; ऐसी अनुभूति वह एकत्व-विभक्त' शुद्ध आत्मा की अनुभूति है; वही समस्त जैन शासन की अनुभूति है। सचमुच, महावीर प्रभु के प्रताप से जैन शासन में अनेकों जीव आत्मा की ऐसी अनुभूति प्राप्त करके अपना कल्याण करेंगे। जब दोनों धर्मात्मा बहिनें इसप्रकार स्वानुभूति की तथा महावीर की महिमा का गुणगान कर रही थीं, तब महावीर कुमार तो उद्यान के एकान्त स्थल में बैठे-बैठे आत्मध्यान में निर्विकल्प स्वानुभूति के महा-आनन्द का साक्षात् वेदन कर रहे थे, दोनों बहिनें दूर से वह दृश्य देखकर आश्चर्य मुग्ध हो गईं; धन्य हैं महावीर ! मानों कोई छोटे से सिद्ध बैठे हों। उद्यान में आत्मध्यान करते हुए उन राजकुमार का दृश्य सचमुच दर्शनीय था। आत्मध्यान का वह दृश्य वीतरागी आत्मसाधना की प्रेरणा देता था। कुछ देर बाद जब प्रभु की ध्यानदशा समाप्त हुई और अमृत झरते नेत्र खुले, उस समय अनेक प्रजाजन प्रभु के दर्शन हेतु एकत्रित हुए थे। उद्यान भी अद्भुत सौन्दर्य में प्रफुल्लित हो रहा था। उसमें खिले हुए विविध प्रकार के पुष्पों एवं फलों से आच्छादित वृक्ष शोभायमान हो रहे थे; चारों ओर पुष्पों की सुगन्ध फैल रही थी। राजकुमार महावीर उस प्रफुल्लित उद्यान की शोभा निहारते हुए साथ ही अन्तर में सम्यक्त्वादि एवं आनन्दादि के पुष्पों से आच्छादित अपने चैतन्य उद्यान में क्रीड़ारत थे। अहा ! मेरे आत्म-उद्यान में जैसे सम्यक्त्व एवं आनन्दादि के अतीन्द्रिय फल-फूल खिल रहे हैं, वैसे क्या अन्यत्र कहीं खिलते होंगे ?...नहीं। जगत में मेरा आत्माराम ....आनन्दमय चैतन्य उद्यान ही सबसे सुन्दर है। उस आत्म उद्यान में केलि करते हुए जिस आनन्दमय शीतलता एवं शान्ति का वेदन होता है वह अनिर्वचनीय है।' - ऐसी अन्तरधारा सहित उद्यान की शोभा देखते-देखते कुमार की दृष्टि एक वृक्ष पर पड़ी, जिसमें एक हजारों पंखुरियों वाला सुन्दर फूल खिला हुआ था; उसे देखकर कुमार बोले -

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