Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 143
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१४१ नमन करता उन जिनेश्वर देव को, धर्मचक्र चला गये शिव गेह जो। गये पावापुरी से निर्वाण को, सन्त-मुनि-गणधर नमें कल्याण हो॥ वीर प्रभु पंचमगति को प्राप्त करके सिद्ध हुए, मुक्त हुए; यह तो आनन्द का प्रसंग है, शोक का नहीं। किसी को प्रश्न उठ सकता है कि अरे, निर्वाण होने पर तो भगवान का विरह हुआ, फिर उसका उत्सव क्यों ? . समाधान - अरे भाई ! तुम बाह्य चक्षुओं से देखते हो इसलिये तुम्हें ऐसा लगता है कि भगवान का विरह हुआ। जो इन्द्रियज्ञान द्वारा शरीर युक्त महावीर' को ही देखते थे उन्हें उन शरीरवान महावीर का विरह हुआ; परन्तु जो शरीर से भिन्न भगवान महावीर के सच्चे स्वरूप को अर्थात् ‘सर्वज्ञ-महावीर' को अन्तर्दृष्टि से - अतीन्द्रिय चक्षु से पहिचानते हैं, उन्हें तो उन सर्वज्ञ परमात्मा का कभी विरह नहीं हैउनके लिये तो वे भगवान लोकाग्र में सिद्धरूप से साक्षात् विराजमान हैं। पावापुरी में २५०० वर्ष पूर्व जो ‘सर्वज्ञ परमात्मा' विराजते थे, वे ही वर्तमान में सिद्धपुरी में विराज रहे हैं। जिस साधक के ज्ञान में उन सिद्ध भगवन्त का स्वरूप उत्कीर्ण हो गया है, उसे सर्वज्ञ महावीर का विरह नहीं है....नहीं है; सर्वथा अतीन्द्रिय ऐसे उन परमात्मा को अपने ही आत्मा में स्थापित करके वह अपने आत्मा को सिद्ध की साधना में लगाता है....और ऐसी साधना का उत्साह ही निर्वाण का महोत्सव है....आत्महित का ऐसा मंगल-महोत्सव कौन नहीं मनायेगा? देखोन, वीर प्रभु के निर्वाण के समय गौतमस्वामी कहीं प्रभुविरह का विलाप करने नहीं बैठे थे; किन्तु चैतन्य की अनुभूति में अधिक गहरे उतरकर मोक्ष की साधना में मग्न हो गये थे। ३० वर्ष तक जिनके सतत् सान्निध्य में रहा। - ऐसे मेरे प्रभु निर्वाण को प्राप्त हुए और मैं अभी छद्मस्थ ही रहा?....अब आज ही साधना पूर्ण करूँगा - इसप्रकार उत्कृष्टरूप से आत्मा की आराधना में लीन होकर उसी दिन केवलज्ञान प्रगट किया और सर्वज्ञ परमात्मा हुए। पूर्ण वीतरागी होकर उन्होंने सर्वोत्कृष्ट रूप से प्रभु का निर्वाण महोत्सव मनाया। उनके शिष्य सुधर्मस्वामी उसी दिन श्रुतकेवली बने । अहा! नमस्कार हो उन केवली तथा श्रुतकेवली भगवन्त को ! पश्चात्, तीर्थंकर प्रभु की वह कुल परम्परा

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