Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 144
________________ अलोक आकाश आवास समातवनय अनेक वर्णवाला चिनवातबलय मूंग के समान वर्णवाला है EN ont-10000 घनोदधिवातवलय .. -५लाख जन प्रमाण रोप्यमयस्वेतपत्राकार मनुप्याक प्रमाण है जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१४२ चलते....चलते श्रीगुरुओं द्वारा हम तक आयी है; हम भी उसी कुलपरम्परा में हैं। कृतार्थ हो गये हम सब थरूर महावीर के मार्ग को पाकर। अपने तीर्थंकर भगवन्तों के मार्ग की उपासना Magisl/आवास करके हम सब अपना कल्याण करें और अपने उन भगवन्तों के सिद्धालय में पहुँचकर सदैव उनके साथ गोमूत्र के समान वर्णवामा। रहें....ऐसी मंगल भावना के साथ यह भागवत पुराण पूर्ण करता हूँ। सिख शिला .. -इसप्रकार भरतक्षेत्र के अन्तिम तीर्थंकर एवं वर्तमान शासन नायक भूमि सर्वार्थ सिन्दि विमान सर्वज्ञ भगवान महावीर तीर्थंकर का मंगल जीवन चरित्र पूर्ण हुआ। अनन्त तीर्थंकर हुए, जग के तारणहार । सिद्ध दशा को साधकर, पहुँचे भवदधि पार ॥ शासन वीर जिनेन्द्र का, अक्षयपद दातार । सेवन कर समकित लहो, जो चाहो भवपार ॥ '. अपने चौबीस तीर्थंकर भगवन्तों का मंगल जीवन बताने वाला यह महापुराण' भव्यंजीवों में जिनमार्ग के प्रति भक्ति जागृत करे, रत्नत्रय की प्राप्ति कराए और मोक्षसुख में स्थापित करे – यही मंगल भावना है। अष्टम निर्वाण महोत्सव PA महावीर भगवान * जीव जय महावीर !

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