Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 121
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/११६ हे राजमाता ! हमारे घर में ऐसा अमूल्यरत्न होने पर भी हम उसे परख नहीं पाये....यह कई बार उत्तम धर्मचर्चा करती थीं, परन्तु हमें खबर नहीं पड़ने दी कि स्वयं राजपुत्री हैं। धन्य है इनकी गम्भीरता ! इनके पुण्य प्रताप से तो हमारे आँगन में वीर प्रभु का पदार्पण तथा पारणा हुआ । धन्य हमारे भाग्य ! यह सब चन्दना की उत्तम भावना का प्रताप है.... बेटी चन्दना ! हमें क्षमा करना । वीर प्रभु को पारणा कराने के पश्चात् चन्दना ने भी चार उपवासों के तप का पारणा किया....पश्चात् रानी मृगावती ने कहा - बहिन चन्दना ! मेरे साथ चलो और राजमहल में आनन्दपूर्वक रहो। मैंने वीर परम वैरागी चन्दना बोली- अरी बहिन ! इस संसार में आनन्द कैसा ? इस संसार की असारता देख ली है; अब इस संसार से बस होओ ! अब तो प्रभु के मार्ग पर चलूँगी और आर्यिका बनकर उनके संघ में रहूँगी । मृगावती ने कहा - बहिन चन्दना ! 'तेरी भावना उत्तम है' किन्तु महावीर प्रभु तो अभी मुनिदशा में विचर रहे हैं, मौन धारण कर रखा है, किसी को दीक्षा भी नहीं देते । जब वे केवलज्ञान प्राप्त करेंगे तब हम दोनों उनकी धर्मसभा में जाकर आर्यिकाव्रत धारण करके उनके चरणों में रहेंगे। तबतक धैर्य रखकर घर में ही धर्मध्यान करो और हमें सत्संग का लाभ दो। तुम कौशाम्बी में इतने दिन रहीं, इतने संकट सहे .... और हमें खबर तक नहीं पड़ी । चन्दना ने कहा- दीदी ! यह सब कर्मों की विचित्रता है.... और मेरे ऊपर अकेले संकट थोड़े ही आये हैं ?... देखो न, आज वीरप्रभु के दर्शन तथा आहारदान का महान लाभ प्राप्त हुआ; वह क्या कम भाग्य की बात है ? संसार में सर्व जीवों को शुभ और और अशुभ, हर्ष और शोक के प्रसंग तो आते ही रहते हैं किन्तु - अपना ज्ञानस्वभाव है, हर्ष-शोक से पार । उस स्वभाव को साधकर, होना भव से पार ॥ मृगावती - तुम्हारी बात सच है बहिन ! एक ओर तुम्हारा दासी जीवन देखकर शोक और दूसरी ओर तुम्हारे ही हाथ से वीर प्रभु का पारणा देखकर हर्ष, - इसप्रकार शोक और हर्ष दोनों एक साथ; इनमें से मैं शोक का वेदन करूँ या हर्ष का ? नहीं; हर्ष और शोक दोनों से परे चैतन्यभाव ही आत्मा का सच्चा

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