Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 137
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१३५ जब श्रेणिक राजा भव्य शोभायात्रा सहित हाथी पर बैठकर प्रभु के दर्शन करने जा रहे थे, तब एक मेंढ़क भी उनके साथ कमल की पंखुरी लेकर चल रहा था। (वह नागदत्तसेठ का जीव था।) मार्ग में हाथी के पाँवतले कुचल जाने से वह मेंढ़क मर गया और प्रभु की पूजा के भावसहित मरकर देव हुआ। देवगति को प्राप्त वह जीव तुरन्त वीर प्रभु के समवसरण में आया, उसकी कथा जैनधर्म में प्रसिद्ध है। आज श्रेणिक राजा के आनन्द का पार नहीं है। अहा ! सर्वज्ञ परमात्मा मेरी नगरी में पधारे....मैं धन्य हुआ। अपनी बड़ी बहिन (त्रिशला) के लाड़ले पुत्र को सर्वज्ञ परमात्मा रूप में तथा छोटी बहिन चन्दनबाला को आर्यिका के रूप में देखकर रानी चेलना का हृदय भी हर्षोल्लास से भर गया और वीर प्रभुकी दिव्यध्वनि सुनकर चैतन्यरस की धारा उल्लसित हुई। राजा श्रेणिक तो चैतन्यरस में ऐसे सराबोर हुए कि प्रभु के पादमूल में ही दर्शनमोह की सातों कर्म प्रकृतियों का क्षय करके क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त किया; उनके ज्ञान की निर्मलता बढ़ गई; व्रत चारित्र तो उन्होंने नहीं लिये, परन्तु दर्शनविशुद्धिप्रधान सोलह कारण भावना भाते-भाते तीर्थंकर नामकर्म प्रकृति का बाँधना प्रारम्भ किया। इस भरतक्षेत्र के ही दो तीर्थंकर....उनमें अवसर्पिणी के अन्तिम तीर्थंकर के चरणों में उत्सर्पिणी के होनेवाले प्रथम तीर्थंकर ने तीर्थंकर नामकर्म बाँधा....और अब मात्र ८२५०० वर्ष पश्चात् वह आत्मा इस भरतक्षेत्र में प्रथम तीर्थंकर के रूप में उत्पन्न होगा। ___ अहा ! राजगृही के वैभारगिरि पर धर्मवैभव का महान आनन्दोत्सव चल रहा हैं। वर्तमान एवं भावी दोनों तीर्थंकरों को एकसाथ देखकर जीव आनन्दित हो रहे हैं। गणधर-मुनिवर भी उन भावी तीर्थाधिनाथ को मधुरदृष्टि से देखकर आशीर्वाद की वर्षा करते हैं। अरे, तिर्यंच भी प्रभु की वाणी से श्रेणिक राजा की महिमा सुनकर आश्चर्य एवं भक्ति सहित उनकी ओर निहार रहे हैं। 'धन्य भाग्य से हमें भावी तीर्थंकर के प्रत्यक्ष दर्शन हुए। यह भावी तीर्थंकर जिस सभा में बैठकर प्रभु की वाणी सुन रहे हैं, हम भी उसी सभा में उन भावी तीर्थंकर के साथ बैठकर वीर प्रभु की वाणी सुन रहे हैं....हम भी उन तीर्थंकरों के मार्ग से अवश्य मोक्ष में जायेंगे।' श्रेणिक राजा ने एक ओर तो ऐसा जाना कि यहाँ से मरकर मैं स्वयं प्रथम नरक में जाऊँगा; उसी समय दूसरी ओर ऐसा जाना कि एकभव पश्चात्स्वयं त्रिलोकपूज्य

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