Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१३७ के लिए दूसरा घर ढूँढ लिया....और महावीर के पास से निकल कर श्रेणिक के पास आ गये। - इसप्रकार तीर्थंकरत्व का अविच्छिन प्रवाह जगत में चलता ही रहता है। इसप्रकार इन्द्रादि देवों द्वारा पूजित एवं भव्यजीवों को मोक्षमार्ग दर्शाते हुए गगनगामी महावीर तीर्थंकर विचर रहे थे। राजगृही से विहार करके प्रभु वैशाली की ओर चलने लगे। बीच में गंगानदी पार करने के लिये उन्हें पुल की या नौका की आवश्यकता नहीं पड़ी, क्योंकि प्रभु तो अब गगनविहारी हो गये थे। वैशाली वीर प्रभु की जन्मभूमि ! वहाँ माता त्रिशला और पिता सिद्धार्थ बारह वर्ष से परमप्रिय वीरनाथ के दर्शनों को आतुर थे। परमात्मा वीरनाथ वैशाली में पधारे और अद्भुत समवसरण के बीच विराजमान उन परमात्मा को देखकर माता त्रिशला के अन्तर में आनन्दोर्मियाँ जाग उठीं – मेरा लाल केवलज्ञानरूपी जगत् श्रेष्ठ अमूल्य रत्न लेकर आया, परमात्मा बनकर हमें दर्शन देने आया। वैशाली की समस्त प्रजा अपने लाड़ले राजकुमार को एक परमात्मा के रूप में देखकर परमहर्षित हुई और महा-महोत्सव किया। जिन्होंने महावीर को बचपन में क्रीड़ा करते देखा था, मुनिरूप से आत्मसाधना करते देखा था और अब सर्वज्ञदशा में परमात्मारूप में देखा,....उन वृद्धजनों को ऐसा लगा कि अरे, कुछ वर्ष पूर्व जो हमारे साथ पृथ्वी पर चलते-फिरते मनुष्य थे वे देखते ही देखते परमात्मा बन गये !.... कैसी अजब है आत्मशक्ति ! ‘आत्मा में ही परमात्मशक्ति है।' - इसप्रकार सर्वज्ञ महावीर को देखते ही अपनी आत्मशक्ति की प्रतीति करके अनेकों जीव परमात्मा बन गये ! प्रभु ने दिव्यध्वनि द्वारा प्रत्येक जीव में परमेश्वरता' की प्ररूपणा की। अहा ! प्रत्येक आत्मा परमात्मवैभव से परिपूर्ण है और वह स्वाधीनरूप से परमात्मा हो सकता है – ऐसी महान बात परमेश्वर के अतिरिक्त कौन बतला सकता है ? और उसे झेलने वाले कोई साधारण जीव नहीं किन्तु ‘जिनेश्वर के नन्दन' होते हैं; मोक्ष के पंथी होते हैं। ___ अहा, वीर का ऐसा सुन्दर राग रहित मार्ग ! उसमें जीवों को जगत की कोई सम्पदा ललचा नहीं सकती, अथवा कोई विपदा डरा नहीं सकती।हे वीर ! आपका मार्ग वह वीरों का मार्ग है; वीतरागता का मार्ग है। वीतरागता में निहित सच्ची वीरता को आपके भक्तों के सिवा और कौन समझेगा ?

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148