Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 119
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-९/११७ तूने मेरा घर पावन किया.... कौशाम्बी नगरी की शोभा बढ़ा दी.... तुझे पाकर मैं धन्य हो गया.... तू तो देवी है.... अरे रे, हम तुझे नहीं पहचान सके और अभी तक दासी बनाकर रखा। बेटी, हमारा अपराध क्षमा कर दे ! तू दासी नहीं है, तू तो जगत्पूज्य माता है। चन्दना बोली- पिताजी, वह बात भूल जाइये....मुझ पर आपका महान उपकार है....आपने ही मुझे संकट में, शरण देकर मेरी रक्षा की है। यह आश्चर्यमय घटना देखकर सुभद्रा सेठानी तो दिग्मूढ़ बन गई.... उसके पश्चाताप की कोई सीमा नहीं थी; वह चन्दना के चरणों में गिरकर क्षमायाचना करने लगी – बेटी, मैं तुझे नहीं पहिचान सकी, मुझ पापिन ने तुझे बहुत कष्ट दिये....मुझे क्षमा कर दे बेटी । चन्दना ने उसका हाथ पकड़कर कहा माता ! वह सब भूल जाओ, मेरे ही कर्मोदय से वह सब हुआ; परन्तु प्रभु महावीर के मंगल- पदार्पण से आपका घर पावन हो गया और हम सब धन्य हुए ! मानों महावीर का अभिग्रह पूर्ण होने के लिये ही यह सब हुआ था। आत्म-मंथन करती हुई चन्दना विचार रही है कि अहा ! एक आहारदान की भावना से मेरी बेड़ी के बन्धन टूट गये.... तो परम चैतन्य की निर्विकल्प भावना से भव के बन्धन टूट जाएँ इसमें क्या आश्चर्य ? आत्मभावना द्वारा मैं अपने भव बन्धन को भी अल्पकाल में अवश्य ही तोड़ डालूंगी। महावीर प्रभु के दर्शन मात्र से मेरे बाह्य बन्धन छूट गये तो अन्तर में चैतन्य प्रभु के दर्शन से भवबन्धन भी टूटने में अब क्या विलम्ब ? (शास्त्रकार प्रमोद से कहते हैं - वाह री वाह, सती ! धन्य है तुम्हारा शील, धन्य है तुम्हारा धैर्य और धन्य है तुम्हारी भावना ! तुम महान हो। प्रभु महावीर जब सर्वज्ञ होंगे तब उनकी धर्मसभा में जो स्थान १४००० मुनियों के नायक रूप में गणधर - गौतमस्वामी का होगा, वही स्थान ३६००० आर्यिकाओं के बीच तुम्हारा होगा। हृदय में परम हर्ष एवं वात्सल्य उमड़ आता है तुम्हारे ऐसे उत्तम - उज्ज्वल जीवन को जानकर ।) चन्दना सारी कौशाम्बी नगरी उमड़ पड़ी है महावीर मुनि को पारणा करानेवाली उन चन्दना देवी के दर्शन करने तथा उन्हें अभिनन्दन देने को । अहा, आज तक जिसे

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