Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - ६ / ११६ ही लोग हर्ष से दौड़ते हुए उधर आने लगे कि चलो, उस भाग्यशाली आत्मा के दर्शन करें और अभिनन्दन करें.... जिसके हाथ से यह महान कार्य हुआ है। लोगों ने जब देखा कि वृषभदत्त सेठ की एक दासी के हाथ से प्रभु ने आहार लिया है, तब वे आश्चर्यचकित हो गये.... . अरे, लोगों को क्या खबर थी कि वह दासी नहीं किन्तु प्रभु महावीर की मौसी है.... उनकी श्रेष्ठ उपासिका है.... प्रभु को पारणा कराके चन्दना धन्य हो गई । .... आहार ग्रहण करके वे वीर योगिराज तो मानों कुछ भी नहीं हुआ हो - ऐसे सहजभाव से वन की ओर गमन कर गये और वहाँ जाकर आत्मध्यान में लीन हो गये। जबतक प्रभु जाते हुए दिखाई दिये, चन्दना उन्हें टकटकी बाँधे देखती रही.... आकाश में देव और पृथ्वी पर जनसमूह उसे धन्यवाद देकर उसकी प्रशंसा कर रहे थे.... किन्तु चन्दना तो सारे जगत को भूलकर, समस्त परभावों से परे, चैतन्यतत्त्व के निर्विकल्प ध्यान में शान्तिपूर्वक बैठी थी.... उसकी गम्भीरता अद्भुत थी । तबतक ÷ - इधर वृषभदत्त सेठ के घर में मुनिराज के आहारदान का प्रसंग बनने से आनन्दमंगल छाया हुआ है..... उधर सेठ स्वयं तो बेड़ी कटवाने हेतु लुहार को बुलाने येथे सो वापिस लौट रहे हैं.... मार्ग में आनन्दमय कोलाहल देखकर लोगों से पूछा - यह क्या हो रहा है ? किस बात का है इतना हर्षमय कोलाहल ? तब प्रजाजन कहने लगे - अरे सेठ ! आपके तो भाग्य ही खुल गये !.... आपके आँगन में तो महावीर मुनिराज का पारणा हुआ है ! पाँच मास और पच्चीस दिन के उपवास पश्चात् पारणे का धन्य अवसर आपको प्राप्त हुआ है। आपके गृहआँगन में चन्दना ने भगवान को आहारदान दिया है.... उसी का यह उत्सव हो रहा है....देव भी आपके आँगन में रत्नवृष्टि एवं जय-जयकार कर रहे हैं। सेठ तो आश्चर्यचकित होकर घर की ओर दौड़े... हर्षानन्द का स्वयंभूरमण समुद्र उनके हृदय में उछलने लगा.... क्या हुआ ? कैसे हुआ ? चन्दना की बेड़ी किसने काटी ? उसने प्रभु को काहे से किसप्रकार पारणा कराया ? ऐसे अनेक प्रश्न हर्ष के समुद्र में डूब गये.... वे घर पहुँचे तो वहाँ सारा वातावरण ही बदल गया था । कहाँ कुछ क्षणपूर्व का अशांत क्लेशमय वातावरण और कहाँ यह उल्लासपूर्ण आनन्द ! चन्दना का अद्भुत रूप पहले से भी अधिक सुन्दर देखकर वे आश्चर्यचकित हो गये और हर्ष से बोल उठे - वाह बेटी चन्दना ! धन्य है तू !

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148