Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 129
________________ 0.GAL PELHI जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१२७ और प्रभु के पादमूल में नम्रीभूत होकर उसी समय उन्होंने संयम धारण किया। इन्द्रराज हर्षपूर्वक यह सब देखते रहे और उन महात्मा-गौतम को आदर पूर्वक मुनिवरों की सभा में ले गये। ज्यों ही मुनिराज इन्द्रभूति-गौतम मुनिवरों की सभा में जाकर प्रभु को हाथ जोड़कर बैठे कि तुरन्त सर्वज्ञ महावीर के सर्वांग से दिव्यध्वनि खिरने लगी - वीर प्रभु के ज्ञान गगन से बरसे अमृतधार; विपुलगिरी पर दिव्यध्वनि की होती जय-जयकार । रत्नत्रय की खिली वाटिका, आनन्द का सौरभ है; करते निज कल्याण जीव, जिनशासन का गौरव है। समवसरण के मध्य विराजे वीरनाथ भगवान; हर्षित हो सुर-नर-मुनि करते प्रभुजी का गुणगान । स्वाश्रित चेतनभाव सहित प्रभु करते मोक्षप्रकाश; भव्यजीव भव से तिरने की लगा रहे हैं आश । रत्नत्रयनिधि की उपासना हरि करते हैं निशदिन, निजवैभव कर प्राप्त सभी होते प्रसन्न मन ही मन । मुनि-गणधर भी धर्मसभा में धरते आतमध्यान; सबके मन की एक भावना हो शिवपुर प्रस्थान । अहा ! वह आश्चर्यकारी दिव्यध्वनि सुनकर सर्व जीव आनन्दमग्न हो गये; उसमें परम चैतन्यतत्त्व का अचिन्त्य स्वरूप श्रवण करके अनेक जीव ऐसे अन्तर्लीन हुए कि तत्क्षण निर्विकल्प होकर आत्म-अनुभूति करके सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र

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