Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 127
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१२५ होता है। हे प्रभो ! आपके शुद्ध चेतनस्वरूप को जानने से हमें अपना भी ऐसा ही शुद्धात्मा अनुभूति में आता है- यह आपका उपकार है। इसप्रकार सर्वज्ञ की सभा में प्रवेश करते हुए मुमुक्षु का गौरव बढ़ जाता था और उसके परिणाम विशुद्ध होते थे। उसे ऐसी अचिन्त्य अनुभूति होती थी, मानों अपने ज्ञान में ही सर्वज्ञ बैठे हों ! प्रभु के चारों ओर दिव्य सभामण्डप है, जहाँ मोक्ष के साधक सभाजन बैठे हैं और भगवान महावीर के दर्शन का आनन्द ले रहे हैं। श्रीमण्डप की शोभा सर्वार्थसिद्धि की शोभा से भी बढ़कर है। अहा! यह तो सर्वज्ञ की सभा....परमात्मा का दरबार.... तीर्थंकर की धर्म सभा ! उसकी अद्भुतता का क्या कहना ! गुणधर एवं इन्द्र जिस सभा में बैठते थे, वहाँ जगत की सर्व लक्ष्मी-समस्त शोभा एकत्रित हुई थी। केवलज्ञान लक्ष्मी का भी जहाँ निवास हो वहाँ अन्य लक्ष्मी को तो कौन पूछे ? ___अहा ! एक ओर भगवान की केवलज्ञान-श्री' अर्थात् सर्वोत्कृष्ट ज्ञानलक्ष्मी की शोभा और दूसरी ओर समवसरण की दिव्य शोभा; इसप्रकार जीव और अजीव दोनों ने अपनी-अपनी सर्वोत्कृष्ट शोभा धारण की थी। परन्तु उनमें से जो जीव उत्कृष्ट शोभावान 'सर्वज्ञ-महावीर' को जान ले, वह जीव सम्यग्दृष्टि होकर अखूट चैतन्यलक्ष्मी के भण्डार अपने में देख लेता है। ___वीतरागी, शान्तभावरूप परिणमित आत्मा कैसा होता है, उसे प्रत्यक्ष देखकर उन्हें आत्मा के शान्तस्वभाव की प्रतीति हो जाती है। अहा! सर्वज्ञ तीर्थंकर जिसके नायक, गणधर जिसके मंत्री और देव जिसके द्वारपाल हों उस दरबार का क्या कहना ! भगवान ऋषभदेव की धर्मसभा (समवसरण) बारह योजन व्यास की थी और भगवान महावीर की एक योजन व्यास की है; परन्तु दोनों धर्मसभाओं में भगवन्तों ने जिस चैतन्यतत्त्व का प्रतिपादन किया तथा जो मोक्षमार्ग बतलाया वह तो एकसमान ही था। उत्तम छाया तथा दिव्यप्रकाश द्वारा जो प्रभु की सेवा कर रहा था, वह अशोक : वृक्ष आश्चर्य उत्पन्न करता था कि जड़ के बिना इतना विशाल वृक्ष कैसे बना ? और देखो, यह भी एक आश्चर्य की बात है कि वहाँ जगत में श्रेष्ठ सिंहासन होने पर भी प्रभु उस पर बैठते नहीं हैं; उससे ऊपर-अन्तरिक्ष में बैठकर ऐसा प्रगट करते

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148