Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 115
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/११३ ही प्रभु मुझे दर्शन देकर इन बेड़ियों से भी छुड़ायेंगे। इसप्रकार वीर प्रभु के स्मरण में लीन होकर वह भूख-प्यास को भी भूल जाती थी,....क्षणभर तो उसका आत्मा मुक्तरूप से किसी देहातीत अगम्यभाव में निमग्न हो जाता था। ऐसी स्थिति में एक दिन बीता....रात बीती....दूसरा दिन भी बीत गया....सेठ वृषभदत्त नहीं आये ! तीसरा दिन बीत गया....तब भी सेठ जी नहीं आये....चन्दना को तीन दिन के उपवास हो गये....तीन दिन तक कोठरी में बन्द और बेड़ियों में जकड़ी हुई वह राजकुमारी आहार-जल के बिना एकाकी पड़ी है और कड़वे-मीठे संस्मरणों में खो गई है, प्रतिक्षण प्रभु महावीर का स्मरण करते हए सम्यक्त्व का मधुर स्वाद ले-लेकर जी रही है। सोच रही है कि या तो अब प्रभु के दर्शन हों या समाधिमरण....। ___इसप्रकार विचार करते-करते तथा प्रभु के दर्शनों की भावना भाते-भाते तीन दिन बीत गये....चौथे दिन प्रात:काल सेठ आ गये। घर का वातावरण कुछ सूना-सूना बेचैन-सा लग रहा था; चन्दना कहीं दिखायी नहीं दी; इसलिये बुलाया, 'चन्दना....बेटी चन्दना ! किन्तु कहीं से उत्तर न पाकर सेठ चिन्ता में पड़ गये; उनके मन में तरह-तरह की शंकाएँ होने लगी....अरे, चन्दना कहाँ गई ? वह निर्दोष कन्या कोई अशुभ कार्य तो कर नहीं सकती। मुझसे या सुभद्रा से पूछे बिना वह कहीं जा भी नहीं सकती।....तो फिर हुआ क्या? कहाँ गई वह ?.... सेठानी से पूछा तो कहती है - मैं कुछ नहीं जानती, दास-दासियों को भी कुछ पता नहीं; वे कुछ बोलते भी नहीं हैं....सेठ व्याकुल हो गये। प्राणों से भी प्रिय पुत्री कहाँ गई ? अन्त में उदास होकर एक वृद्ध दासी से पूछा - बहिन, तुम्हें मालूम है चन्दना कहाँ है ? तुम सब उदास क्यों हो ? कुछ बोलते क्यों नहीं ? दासी ने कोई उत्तर तो नहीं दिया, परन्तु सेठ की ओर देखकर सिसकने लगी। उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे....एक गहरा नि:श्वास छोड़कर कोठरी की ओर संकेत करके वह चली गई। ___ सेठ ने तुरन्त कोठरी की खिड़की के पास जाकर देखा तो भीतर चन्दना दिखाई दी....बाहर से ताला लगा हुआ था। चन्दना का मुँडा हुआ सिर और हाथ-पाँव में पड़ी हुई बेड़ियों को देखकर सेठ से रहा नहीं गया....वे करुण चीत्कार कर उठे - अरे बेटी चन्दना ! तेरी यह दशा ! और फिर भी मुँह से आह तक नहीं करती ? अरे, किस दुष्ट ने तेरी यह दशा की है ?

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