Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/११२ थी, कोई नौकर-चाकर भी घर में नहीं थे; इसलिये सदा की भाँति चन्दना पानी ले आयी और पितातुल्य सेठजी के पाँव धौने लगी। पाँव धोते-धोते उसके कोमल केशों का जूड़ा खुल गया और केश धूलधूसरित होने लगे; इसलिये सेठ ने निर्दोषभाव से वात्सल्यपूर्वक पुत्री के केश हाथ से ऊपर उठा लिये। ठीक उसी समय सुभद्रा सेठानी आ पहुंची और चन्दना के खुबसूरत केशों को सेठ के हाथ में देखकर क्रोध से आग बबूला हो गई, उसे लगा कि मेरी अनुपस्थिति में ये दोनों एक-दूसरे से प्रेमालाप कर रहे थे। बस, उसकी शंका निर्णय में बदल गई और उसने निश्चय कर लिया कि किसी भी प्रकार चन्दना को घर से निकालना है....रे दैव ! तेरे भण्डार में क्या-क्या भरा है? __जिज्ञासु पाठको ! तुम निराश मत होना । कर्मोदय की तथा धर्मी जीव के परिणामों की विचित्रता देखो ! यह कर्मोदय भी चन्दना के लिये वरदानरूप बन जाता है....वह तुम कुछ ही समय में देखोगे। कर्मोदय से व्याकुल हो जाना वह धर्मी जीवों का काम नहीं है;....उस समय भी अपनी धर्मसाधना में आगे बढ़ते रहना ही धर्मात्माओं की पहिचान है। वे जानते हैं कि -
जो कर्म के ही विविध उदय विपाक जिनवर ने कहे, वे मम स्वभाव नहीं तथा मैं एक ज्ञायक भाव हूँ। सब जीव में समता मुझे नहिं बैर किसी के संग मुझे, इसलिए आशा छोड़कर मैं करूँ प्राप्ति समाधि की॥
अब सुभद्रा सेठानी भयंकर वैरबुद्धि से चन्दना को अपमानित करने तथा बदला लेने को तत्पर है। एक दिन जब सेठ नगर से बाहर गये हुए थे, तब सेठानी ने चन्दना को एकान्त में बुलाकर उसके सुन्दर केश काटकर सिर मुंडवा दिया। अरे, अत्यन्त रूपवती राजपुत्री को कुरूप बना देने का प्रयत्न किया....इतने से उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ तो चन्दना के हाथ-पाँव में बेड़ियाँ डालकर उसे एक
अन्धेरी कोठरी में बन्द कर दिया; ऊपर से तरह-तरह के कटु वचन कहे; भोजन में भी प्रतिदिन सुबह-सुबह मात्र उबले हुए उड़द और गरम पानी दिया। अरे, सिर मुंडवाकर जिसे बेड़ी पहिना दी गई हो उस सुकोमल निर्दोष स्वानुभवी राजकुमारी का उस समय क्या हाल होगा ? आँखों से आँसू बह रहे हैं; मन में वीरनाथ प्रभु का स्मरण होता है। उसे विश्वास है कि मेरे महावीर मुझे संकट से उबारने अवश्य आयेंगे....जिन महावीर ने मुझे सम्यक्त्व देकर भव बन्धन से मुक्त किया है, वे