Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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माता
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग - ६/७२
बेटा ! तू तो स्वानुभूति की मस्ती में नित झूमे... रत्नत्रय के लेता झोंके प्यारे-प्यारे हिय में... बेटा ! जन्म तुम्हारा रे...जगत को आनन्ददायक है...
अहा ! त्रिशला माता और बाल - तीर्थंकर वर्द्धमान कुँवर की यह चर्चा कितनी आनन्दकारी है !
माता को आनन्दित करके वीरकुमार बोले- माँ ! मेरे मित्र बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं, मैं उनके पास जाता हूँ। माँ ने कहा अवश्य जाओ बेटा! सबको आनन्द देने के लिये तो तुम्हारा अवतार है।
माताजी से आज्ञा लेकर वीरकुमार राजोद्यान में आये; उन्हें देखते ही देवकुमार तथा राजकुमार हर्षपूर्वक जय-जयकार करने लगे और अनेक प्रकार से उनका सन्मान किया । वर्द्धमानकुमार ने भी प्रसन्न दृष्टि से सबकी ओर देखा और माताजी के साथ हुई आनन्दकारी चर्चा कह सुनायी। वह सुनकर सबको बड़ी प्रसन्नता हुई।
एक राजकुमार बोले - अहा ! तीर्थंकर के मित्र होने से अपने को उनके साथ रहने तथा खेलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, तो हम सब उनके साथ मोक्ष की साधना भी अवश्य करेंगे... वे दीक्षा ग्रहण करेंगे तब उनके साथ हम सब भी दीक्षा लेंगे। यह सुनकर देवकुमारों के मुख पर उदासी छा गई। 'तुम क्यों उदास हो गये मित्र ?' ऐसा पूछने पर ... ।
देवकुमारों ने कहा - हे मित्रो ! तुम तो मनुष्य पर्याय में हो, इसलिये प्रभु के साथ दीक्षा ले सकोगे; परन्तु हम देवपर्याय में होने के कारण प्रभु के साथ दीक्षा नहीं ले सकते. इस विचार से हमें खेद होता है।
महावीर बोले- बन्धु देव ! सम्यग्दर्शन द्वारा देवपर्याय में भी चैतन्य की आराधना चलती रहती है और ऐसे आराधक जीव मोक्ष के मार्ग में ही चल रहे हैं; जीव को मोक्षमार्ग की प्राप्ति वह अपूर्व महान लाभ है। मोक्षमार्ग में लगा हुआ जीव अल्पकाल में मोक्ष को साध लेगा इसमें संशय नहीं है।
महावीर की ऐसी गम्भीर वाणी सुनकर सब को हर्ष हुआ और फिर बालतीर्थंकर के साथ सम्यक्त्व सम्बन्धी बहुत चर्चा की । अहा ! छोटे-से द्रव्य-तीर्थंकर