Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 87
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/८५ . वाह ! आत्मा के अपार वैभव का मधुर संगीत सुनकर सभाजन शान्त रस में निमग्न हो गये। आज की धर्म चर्चा में वे इतने तन्मय हो गये कि किसी को उठने का ही मन नहीं होता था। अहा ! एक तो अति सुन्दर आत्मतत्त्व की चर्चा और वह भी तीर्थंकर के श्रीमुख से....सुनकर किसे आनन्द नहीं होगा ? सबको ऐसा लगा कि अहा ! अभी तो चौथा काल धर्मयुग वर्त रहा है और अन्तिम तीर्थंकर का आत्मा हमारे समक्ष साक्षात् विराज रहा है। जगत के जीवों को तो उनकी दिव्यध्वनि/उपदेश उन्हें केवलज्ञान होने पर सुनने को मिलेगा, जबकि हमें - वैशाली गणतन्त्र के प्रजाजनों को तो वर्तमान में ही उनके श्रीमुख से धर्म श्रवण का महाभाग्य प्राप्त हुआ है तथा उनके प्रताप से अनेक जीव धर्म प्राप्त कर रहे हैं। - इसप्रकार वीर कुँवर की प्रशस्ति एवं जय-जयकार पूर्वक सभा समाप्त हुई। वैरागी वर्द्धमान का विवाह से इन्कार अहा! बाल-तीर्थंकर वीरकुमार का जीवन तो ज्ञानचेतना सम्पन्न है। धर्म के भरे यौवन में वर्तते हुए वे अन्तरात्मा अपनी ज्ञानचेतना को विषय-कषायों से अत्यन्त दूर रखते हैं। एक तो राजपुत्र और उसमें युवावस्था होने पर भी उनके चित्त में कोई वासनाओं का उद्भव नहीं होता; वे तो अपनी चैतन्य मस्ती में मस्त हैं। शरीर के दिव्यरूप के साथ-साथ उनकी चेतना का रूप भी निखरता जा रहा है। ज्यों-ज्यों शरीर का रूप बढ़ता जा रहा है, त्यों-त्यों वीरप्रभु की शरीर के प्रति विरक्ति में भी वृद्धि हो रही है। अहा ! देह की वृद्धि होने पर भी देह के प्रति ममत्व में वृद्धि नहीं हो रही है। _ वैशाली गणतन्त्र के शृंगाररूप वर्द्धमानकुमार की वीरता एवं रूप गुणसम्पन्न युवावस्था को देखकर अनेक राजाओं की ओर से अपनी राजकुमारियों का विवाह वर्द्धमानकुमार से करने के लिये महाराजा सिद्धार्थ के पास मंगनी आने लगीं। एकबार कलिंग देश की चम्पापुरी के महाराजा जितशत्रु की ओर से सन्देश लेकर एक राजदूत वैशाली कुण्डपुर आया और उत्तम भेंटों द्वारा महाराजा तथा वीरकुँवर का सम्मान करके कहने लगा-हे महाराज! हमारे महाराजा की राजकुमारी यशोदा रूप-गुणसम्पन्न है; जैसे उत्तम उसके धर्म-संस्कार हैं, वैसा ही अद्भुत रूप-यौवन है; श्री वीर कुँवर के उत्तम गुणों से आकर्षित होकर हमारे महाराजा ने राजकुमारी यशोदा का विवाह वीर कुँवर के साथ करने का निश्चय किया है, वह प्रस्ताव लेकर मैं आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ।

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