Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/८७ ___ महावीर ने कहा - माँ ! समझते हुए भी तुम पुत्रमोह के कारण ऐसा कह रही हो। हे माता ! क्या संसार के जाल को तुम नहीं जानती ! देखो तो सही, कितना दु:खी है यह विषयाधीन संसार ! इससे तो जितनी जल्दी छूटा जा सके उतना अच्छा ! हे माता ! इस सम्बन्ध में ऋषभादि तीर्थंकरों का उदाहरण मेरे लिये उचित नहीं है; क्योंकि उनकी आयु तो करोड़ों-अरबों वर्ष की अतिदीर्घ थी; जबकि मेरी आयु तो मात्र ७२ वर्ष की है और उसमें से तीस वर्ष तो व्यतीत हो चुके हैं; मेरे लिये तो पिछले तीर्थंकर श्री नेमिनाथ और पार्श्वनाथ का उदाहरण ही ठीक लगता है; उन तीर्थंकरों ने विवाह नहीं किया था, उसीप्रकार मैं भी विवाह के बन्धन में आत्मा को नहीं बाँधना चाहता। ___ बस! पुत्र के हृदय को बराबर जाननेवाली माता ने फिर कोई विशेष तर्क नहीं किया। पुत्र की महानता देखकर वे मन ही मन गौरव का अनुभव करने लगीं; उनके मोह पर मानों महावीर के वैराग्य का कुठाराघात होने से मोह के टुकड़े होने लगे; धर्म साधना के प्रति उनका चित्त दृढ़ हो गया। कलिंग के राजदूत को निराशा पूर्वक विदा करना पड़ा....हाँ, परन्तु वीर कुँवर ने यशोदा कुमारी के लिये एक अमूल्य भेंट भेजी.... वहभेंट अर्थात् ‘उत्तम वैराग्यजीवन जीने का महान आदर्श!' यशोदाकुमारी ने भी बड़े उत्साहपूर्वक उस महानआदर्श को स्वीकार किया और राजुल की भाँति वैराग्य पूर्वक अपना जीवन आत्मसाधना के मार्ग में लगाया।
जब कुण्डग्राम के निकट स्थित वैशाली में त्रिशला माता की सबसे छोटी बहिन राजकुमारी चन्दनबाला ने उपरोक्त घटना सुनी, तब उस वीर मौसी ने हार्दिक उल्लासपूर्वक वर्द्धमानकुमार के वैराग्य का स्वागत किया-वाह! धन्य है महावीर को! चन्दना अभी छोटी है; परन्तु उसका हृदय महान है। वीरकुमार विवाह नहीं करेंगे यह जानकर मौसी चन्दनबाला ने भी मन ही मन विवाह न करने का निर्णय कर लिया। धन्य चन्दना ! और धन्य हो तुम्हारे शील का सौरभ !!
वीरकुमार की मौसी चन्दना से चर्चा चन्दना ने समझ लिया कि विरागी अब अधिक दिनों तक गृहवास नहीं करेंगे, इसलिये अपने भानजे (बहनोता) महावीर से मिलने तथा उनके साथ वैराग्य चर्चा करने हेतु उसका मन लालायित हो उठा और कुछ ही दिनों में वह कुण्डग्राम