Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 66
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - ६ / ६४ देवियाँ उन्हें आनन्द से खिलाती थीं, माता उन्हें झूले में झुलाती थीं, देवकुमार हाथी के बच्चे का रूप धारण करके वीर कुँवर को सूँड पर बैठाकर झुलाते थे....तथापि वीर कुँवर डरते नहीं थे आनन्द से झूलते थे। उनके शरीर की ऊँचाई १ धनुष (छह फुट ) थी; रंग पीला सुवर्ण जैसा था; ७२ वर्ष की आयु थी और तीनों लोक में सबसे सुन्दर अद्भुत रूप था। अति मनोज्ञ उनके शरीर में जन्म से ही दस अतिशय थे - वह शरीर मलमूत्र रहित, प्रस्वेद रहित था, रक्त का रंग श्वेत दूध समान था, वज्रसंहनन था, सर्वांग सुन्दर उसकी आकृति थी, सुगन्धित श्वास था, अद्भुत रूप, अतिशयबल एवं मधुरवाणी थी। उस शरीर में १००८ उत्तम चिन्ह थे । इसप्रकार बाल-तीर्थंकर के शरीर में जन्म से ही पुण्यजनित दस अतिशय थे। वह अतिशयता कर्मजनित शरीराश्रित थी, उसके द्वारा कहीं भगवान की सच्ची पहिचान नहीं होती; हाँ ! भगवान के आत्मा में जन्म से ही सम्यग्दर्शन - ज्ञानरूप चैतन्य भावों की जो अतिशयता थी, वह धर्मजनित और आत्माश्रित थी, वही उनकी सच्ची अतिशयता थी और उन लक्षणों द्वारा भगवान को सच्चे स्वरूप में पहचाना जा सकता है। शरीर के गुणों की दिव्यता वह कहीं वास्तव में महावीर नहीं है, वह तो महावीर के आत्मा के साथ संयोगरूपं मात्र से लगा हुआ सुन्दर पुद्गलों का पिण्ड है, महावीर के सान्निध्य के कारण वह भी उपचार से पूज्यरूप बना है। सच्चे महावीर तो अतीन्द्रिय, रूपातीत, अशरीरी, चैतन्यगुण-सम्पन्न हैं। ऐसे भाव से जो महावीर को जानता है वह जीव सम्यक्त्व प्राप्त करके आनन्दित होता है। तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वप्रभु का निर्वाण होने के २५० वर्ष पश्चात् भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया अर्थात् पार्श्वप्रभु के निर्वाण के १७८ वर्ष पश्चात् वीरप्रभु का अवतार हुआ। उनकी आयु ७१ वर्ष ६ माह १६ दिन थी। (बालप्रभु कुँवर को रत्नों के पालने में झुलाते हुए माता त्रिशला देवी तथा छप्पन कुमारी देवियाँ कैसे सुन्दर मंगल-गीत गाती थीं ! उनकी वानगी भगवान नेमिनाथ चरित्र में देखिये ।)

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