________________
का छोटा भाई सुग्रीव अपनी बहन दशानन को देकर उनकी अनुमति से वंश परम्परागत राज्य का सुखपूर्वक पालन करने लगा। दशानन नित्यालोक नगर के राजा की बेटी रत्नावलि से विवाह कर लौट रहे थे कि कैलाश पर्वत पर उनका विमान रुक गया। कारण जानने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि इस पर्वत पर कोई मुनि तपस्या कर रहे हैं। अत: मुनि के दर्शन करने के लिए वे नीचे उतरे तो देखकर गुस्से से लाल-पीले हो गए और विवेक रहित होकर मनि से कहने लगे कि राज्य अवस्था में तो तुम्हें मान था ही, पर निग्रंथ वेश धारण करने पर भी तुम्हारा मान नहीं गया, जो मेरे जाते हुए विमान को रोक लिया। अब मैं तेरा यह मान चूर-चूर करके रहूँगा-इतना कहकर शक्ति के गर्व में चूर दशानन ने मुनि को कष्ट देने के लिए कैलाश पर्वत को उठाकर फैंकने का उपक्रम किया। जिससे पर्वत हिलने लगा, पशु-पक्षी डर कर भयानक शब्द करने लगे। इन आवाजों से मुनिराज बालि का ध्यान भंग हुआ, तब पर्वत पर विद्यमान मंदिरों व प्राणियों के लिए बालि मुनि ने अपने पैर का अंगूठा धीरे से दबाया। उस दबाव से दशानन पृथ्वी में धंसने लगा, उसके हाथ पैरों में चोटें आ गई और जब उससे दर्द सहन नहीं हुआ तो वह रोने लगा। तभी से सभी दशानन को 'रावण' कहने लगे। रत्नावलि ने मुनिराज से विनय पूर्वक माफी मांगी, तब मुनिराज बालि ने दयालु होकर अँगूठा छोड़ दिया। दशानन पर्वत के नीचे से निकलकर मुनिराज के पास आए और उन्हें नमस्कार कर क्षमा मांगी तथा मंदिर में जाकर मुनिराज के अपमान के प्रायश्चित के लिए, भगवान की पूजा स्तुति करने लगा। मुनिराज बालि ने भी गुरु. के निकट जाकर प्रायश्चित किया फिर ध्यान में ऐसे लवलीन हुए कि अन्तर्मुहूर्त में चारों घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान की प्राप्ति कर ली। दशांगपुर नामक नगर में जन्म से ही बलवान, क्रूर, कर्मी राजा वज्रकर्ण राज्य करता था। एक दिन जब वह जंगल में शिकार खेलने गया, तब वहाँ मुनिराज को देखकर उसका मन कुछ शांत हुआ और उसने उन मुनिराज के समक्ष प्रतिज्ञा की, मैं जिनेन्द्र देव, जिनवाणी और जिन गुरु के अतिरिक्त अन्य किसी को नमस्कार नहीं करूँगा। साथ ही उन्होंने श्रावक के व्रत लिए, उचित ही है; क्योंकि निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनिराज के समक्ष, जब जन्मजात बैर भाव वाले मांसाहारी पशु भी अपनी क्रूरता छोड़ देते हैं तो मानव का तो कहना ही क्या है? राजमहल छोड़ने पर वज्रकर्ण को चिन्ता हई कि मैं तो उज्जयिनी के राजा सिंहोदर का सेवक हूँ, उन्हें नमस्कार करना अनिवार्य है। यदि उन्हें नमस्कार नहीं करूँगा,त वे दण्ड देंगे। नमस्कार करके मैं अपनी प्रतिज्ञा भी भंग नहीं करना चाहता। अब मुझे क्या करना चाहिए? इस प्रकार बहुत सोच-विचार के पश्चात् उन्होंने एक अंगूठी में मुनिसुव्रत भगवान
56