Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 449
________________ मोह से जिसे इष्ट समझ लिया जाता है वही अनिष्ट हो जाता है और जिसे अनिष्ट समझ लिया जाता है वही इष्ट हो जाता है, क्योंकि निश्चय नय से संसार में न कोई पदार्थ इष्ट है औन न कोई पदार्थ अनिष्ट है। ____लौकिक सुख वास्तव में दुःख ही हैं। भोगसाधनात्मक इन भोगों का वियोग होने से जो दु:ख उत्पन्न होता है तथा भोगोपभोग से जो सुख मिलता है, इन दोनों में दुःख ही अधिक समझना चाहिए। देह भूख, प्यास, शीत, उष्ण और रोगों से पीडित होता है, अनित्य ऐसे देह में आसक्त होने से कितना सुख प्राप्त होगा? अत्यल्प सुख की प्राप्ति होगी स्थायी नहीं। जब जीव इतना समझने लगता है तब वह मोह के जाल से राग के जाल से निकलना चाहता है और वैराग्य की ओर बढ़ता है। तत्त्वों को ठीक प्रकार से समझना ही भेद विज्ञान का लक्षण है। बन्ध तत्त्व के सन्दर्भ में पं. दौलतराम जी कहते हैं कि शुभ-अशुभ बंध के फल मॅझार, रति अरति करै निजपद विसार। आतमहित हेतु विराग ज्ञान, ते लखै आपको कष्टदाना॥६॥ यह अज्ञानी जीव अपने ज्ञाता-दृष्टापन को भूलकर शुभ कर्म के फल में राग करके प्रसन्न होता है और अशुभ कर्म के फल भोगने में दुःख का अनुभव करता है। यह बंध तत्त्व का उल्टा श्रद्धान है। पुण्य और पाप शुभ और अशुभ परिणामों का फल है बन्ध की अपेक्षा दोनों एकसमान हैं, इसमें हर्ष-विवाद क्या करना? महाकवि पं. भूधरदास जी एक स्तुति में भगवान के समक्ष कहते हैं कि अहो! जगत् गुरु देव सुनियो अरज हमारी। पाप-पुण्य मिल दोइ, पायनि बेड़ी डारी। तन कारागृह माहि मोहि दिये दुःख भारी॥ जिसकी तत्त्वबुद्धि बन जाती है और पर्याय बुद्धि नहीं रहती। वही राग से छूटता है और वैराग्य की ओर बढ़ जाता है। तत्त्वज्ञानी और अतत्त्वज्ञानी की दशा का वर्णन करते हुए आचार्य पूज्यपाद स्वामी कहते हैं कि शुभं शरीरं दिव्यांश्च विषयानभिवाञ्छति। उत्पन्नात्मकमतिर्दे हे तत्त्वज्ञानी तदच्युतिम्॥ (समाधितन्त्र) जो तन में अपनत्व बुद्धि रखते हैं वे ही सुन्दर तन की चाह करते हैं, बाह्य पदार्थों की चाह करते हैं। वे देव-मनुष्य आदि पर्यायों में इन्द्रिय विषयों की चाह, बाँधा करते हैं। तत्त्वज्ञानी इनसे उल्टे तन रहित होने की इच्छा करते हैं अर्थात् उनकी तन में अपनत्व बुद्धि नहीं होती वे तो तन 430

Loading...

Page Navigation
1 ... 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458