Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 361
________________ रहे हैं और भूखे सो रहे हैं।' इन दोनों का वार्तालाप सुनकर वृद्ध सागरदत्त के हृदय में तूफान उठ गया एक-एक शब्द उसे शूल के समान चुभने लगे। उसे यह बात बहुत बुरी लगी, कि प्रतिदिन मेवा मिष्ठान्न बनते हैं और यह कह रही है हम बासी खा रहे हैं और भूखे सो रहे हैं। इसके अतिरिक्त तब तो आश्चर्य और क्रोध का ठिकाना न रहा जब उसने यह कहते सुना कि उसकी सास झूले में झूल रही है और ससुर का तो जन्म ही नहीं हुआ। जबकि हम दोनों की 60-65 वर्ष की आयु है। उसको बहू पर इसलिए क्रोध आ रहा था क्योंकि आज उसने लक्षाधीश सेठ की इज्जत खाक में मिला दी और बालमुनि पर इसलिए कि साधु होकर उन्हें ऐसे प्रश्न पूछने की क्या आवश्यकता थी। अन्त में सेठ सागरदत्त दाँत पीसता हुआ, मुनिराज और बहू के पास आता है और आँख लाल करके बोलता है कि 'महात्मन! घर की मान-मर्यादा को खाक में मिला देनेवाली नादान इस छोकरी के साथ वार्तालाप करके अपना समय व्यर्थ में क्यों नष्ट कर रहे हो। आप समझदार हैं, इसलिए इस मूर्ख के साथ वार्तालाप मत करो। ____ मुनिराज कहते हैं कि-सेठ तुम्हारी यह बहू मूर्ख नहीं है, अपितु बहुत विदुषी है। शास्त्रज्ञ है। क्रोध से तम-तमाता सेठ कहता है कि-इसने कौन-सी चतुरता की बात कही; दस बजे हैं और यह कह रही है कि अभी तो सवेरा है। इसका ससुर 65 साल का है और इसके सामने उपस्थित है, तो भी यह कह रही है कि ये तो अभी पैदा ही नहीं हुये। आप ही बताइये कि सास-ससुर के बिना इसके पति का जन्म कैसे हुआ, हमारे घर में प्रतिदिन पकवान बन रहे हैं, हम बासी कैसे खाएंगे और भूखे रहने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। ____ अब मुनिराज एक-एक प्रश्न का उत्तर देते हैं। कहते हैं कि सेठ तेरी वधू ने मेरी युवा अवस्था व तेजस्विता देखकर कहा था-'अभी सबेरा है। अत: इस उभरती हई अवस्था में ही सन्यास जैसे कठोर मार्ग पर अनुसरण कैसे कर लिया. मैंने इस बहिन के रहस्य भरे भाव को देखकर उत्तर दिया था कि काल का मुझे पता नहीं है अर्थात् मृत्यु का कोई भरोसा नहीं है, समय अपना ग्रास अवश्य बनाऐगा। ___ उसके बाद मैंने तत्त्वज्ञान की दृष्टि से और परीक्षा लेने की दृष्टि से प्रश्न पूछे थे कि तुम्हारे घर में धर्म रुचि वाले कोई व्यक्ति हैं कि नहीं, क्योंकि जो मानव धार्मिक प्रवृत्ति वाला होता है, उसका जन्म ही सार्थक है। अन्यथा उसका जन्म पशु के समान है। भोजन करना, निद्रा लेना, भयभीत होना तथा भोग करना ये तो सब क्रियाएँ पशुवत् ही हैं, केवल धर्माचरण के द्वारा ही मानव और पशु में भेद है। इसलिए मैंने तुम्हारी पुत्रवधू से तुम्हारे बारे में प्रश्न पूछे थे। उसके उत्तर से ज्ञात हुआ कि तुम्हारा छोटा लड़का अर्थात् उसका पति पाँच साल से धर्म रुचि रखते हैं। तुम्हारी बड़ी पुत्रवधू दो साल से धर्म में रुचि रखती है और बड़ा पुत्र एक साल से। इस दृष्टि - 338

Loading...

Page Navigation
1 ... 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458