Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

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Page 407
________________ परिग्रह त्यागे-ये आठ मूलगुण गृहस्थों के होते हैं। (यहाँ मधु के स्थान पर जुए का त्याग कराया गया है) आचार्य अमृतचन्द कहते हैं कि मद्यं मांसं क्षौदं पञ्चोदुम्बरफलानि यत्नेन। हिंसाव्युपरतिकामै मोक्तव्यानि प्रथमदेव।। अष्टावनिष्टदुस्तरदुरितायतनान्यभूनि परिवर्त्य। जिनधर्मादेशनाया भवन्ति पात्राणि शुद्धधियः।। जो जीव हिंसा का त्याग करना चाहते हैं, उन्हें प्रथम ही यत्नपूर्वक मद्य, मांस, मधु और पाँच उदुम्बरफल-ये आठ वस्तुओं का त्याग करना योग्य है। ___ दु:खदायक, दुस्तर और पाप के स्थान ऐसे आठ पदार्थों का परित्याग करके निर्मल बुद्धिवाले पुरुष अर्थात् श्रावक जैनधर्म के उपदेश के पात्र होते हैं। दूसरे शब्दों में प्रथम इन आठ वस्तुओं का त्याग कराया जाय, तत्पश्चात् ही कोई अन्य उपदेश दिया जाय। जैसे जड के बिना वृक्ष नहीं होता, वैसे ही इनका त्याग किए बिना श्रावक नहीं होता, इसी कारण इनका नाम मूलगुण है। सागारधर्मामृत में पं. आशाधर जी लिखते हैं कि अष्टैतान् गृहिणां मूलगुणान् स्थूलवधादि वा। फलस्थाने स्मरेत् द्यूतं मधुस्थानं इहैव वा।। मद्य, माँस, मधु और पाँच उदुम्बर फलों का त्याग आठ मूलगुण हैं। दूसरे शब्दों में पाँच फलों के त्याग के स्थान में पाँच स्थूल हिंसा आदि के त्याग को भी गृहस्थों के मूलगुण कहते हैं। दूसरे शब्दों में मद्य, माँस, मधु तथा पाँच स्थूल हिंसा आदि के त्याग रूप आठमूल गुणों में ही मधु के स्थान में जुए के त्याग को आठ मूलगुणों में कहा है। आचार्यों के कथन को दृष्टि में रखते हुए यह बात सिद्ध हो जाती है कि अष्ट मूलगुणों का आधार हिंसा का त्याग करना है। 1. मद्य (शराब) सेवन का त्याग। 2. माँस भक्षण का त्याग। 3. मधु (शहद) भक्षण का त्याग। 4. पाँच उदुम्बर फल (बड़फल, पीपल फल, पाकर (पिलखन) फल, कठूमर (अंजीर) फल और गूलर फल) भक्षण का त्याग। 5. रात्रि भोजन करने का त्याग। - 388

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