Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

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Page 428
________________ एक बार उनके मित्र कपिल की स्त्री कपिला सेठ सुदर्शन पर मोहित हो जाती है। इसका पति जब बाहर गया हुआ था, तब वह मौका देखकर छल से सुदर्शन सेठ को अपने घर बुला लेती है और अपना प्रयोजन उसे बता देती है। सेठ सुदर्शन कहता है कि मैं नपुंसक हूँ, इस प्रकार कहकर वह अपने शील की रक्षा कर लेता है। ___ एक बार राजा प्रजा को आदेश देता है कि वसंत ऋतु की छटा बहार देखने को नगर का भ्रमण करना है। राजा हाथी पर आगे-आगे चल रहे हैं, उनके पीछे उनकी रानी का रथ और उसके पीछे सेठ सुदर्शन का रथ चला जा रहा है। सेठ सुदर्शन अपने परिवार सहित रथ पर सवार थे। रानी की दृष्टि जब सेठ सुदर्शन पर पड़ती है तो वह उस पर मोहित हो जाती है। उसके पास बैठी उसकी सखी कपिला सब समझ जाती है तब वह कहती है कि वह तो नपुंसक है। तब रानी कहती है कि यदि सेठ नपुंसक होता तो इसके यह पुत्र कैसे होता? यह सोच महल में जाकर धाय के द्वारा वह सुदर्शन को अष्टमी के दिन श्मशान से उठाकर महल में बुला लाती है। वहाँ वह अपना मन्तव्य पूरा करने की सभी कुचेष्टाएँ करती है, किन्तु सेठ सुदर्शन अपने शील में दृढ़ रहते हैं। जब रानी का उद्देश्य सुबह तक पूर्ण नहीं हुआ तब वह भयभीत होती है कि अब क्या होगा? यह सोच वह अपना सारा शरीर नाखूनों से नोंच लेती है, कपड़े आदि फाड़ लेती है और चिल्लाने लगती है कि बचाओ-बचाओ, यह पापी मेरा शील लूटने आया है। बड़ा धर्मात्मा बनता है, यह ढोंगी है, पापी है। राजा के सत्य बात पूछने पर भी सुदर्शन सेठ कुछ नहीं बोलता है। ध्यान में लीन खड़ा रहता है, तब राजा सेवकों को आदेश देता है कि इसे मृत्यु स्थल पर ले जाकर फाँसी लगा दो। मृत्यु स्थल पर सेठ सुदर्शन को ले जाकर खड़ा कर दिया जाता है। वे ध्यान में लीन हैं, जब सेवक फाँसी लगाने लगते हैं तब देखते हैं कि फाँसी का फंदा फूलों का हार बन जाता है। शूली सिंहासन बन जाती है। चारों ओर शीलवान की जय-जय आदि के नारे लगने लगते हैं। सेवक गण यक्षों द्वारा कील दिये जाते हैं। जब राजा को पता चलता है तो वह वहाँ अपनी विशाल सेना सहित पहुँचता है और यक्षों को युद्ध के लिए ललकारता है। युद्ध होता है और राजा पराजित हो भागने लगता है। वह सेठ सुदर्शन के पास आता है और उसके चरणों में गिर पड़ता है। कहने लगता है-हे शीलवान! मेरी रक्षा करो। तब सेठ सुदर्शन की आज्ञा से यक्ष उसे और उसके सेवकों को मुक्त कर देते हैं। ___ इधर रानी को जब पता चलता है कि सेठ सुदर्शन बच गया है, मारा नहीं गया तब वह भयभीत हो फाँसी लगा कर आत्मघात कर लेती है। रानी की धाय भी डर के मारे भाग कर पटना में देवदत्ता नामक वेश्या के पास रहने लग जाती है। जब सुदर्शन के बारे में वह उसे बताती है तो सुनकर वह भी उस पर मोहित हो जाती है। ........... E 409 - - -

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