Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

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Page 442
________________ वर्षा 7 दिन 2 घड़ी 8 पहर 8 पहर 4 पहर 2 घड़ी भोज्य पदार्थों की मर्यादाएँ क्र.सं.भोज्य पदार्थ का नाम शीत ग्रीष्म बूरा 1 मास 15 दिन दूध (दुहने के पश्चात्) | 2 घड़ी 2 घड़ी दूध (उबालने के पश्चात्) 8 पहर 8 पहर (नोट-यदि स्वाद बिगड़ (एक घड़ी = 24 मिनट) जाये तो त्याज्य है।) (एक पहर = 3 घण्टे) दही (गर्म दूध का) 8 पहर 8 पहर छाछ बिलोते समय पानी डाले 14 पहर 4 पहर पीछे पानी डालें तो 2 घड़ी 2 घड़ी घी (अठपहरा बना हुआ) (जब तक स्वाद न बिगड़े) तेल (जब तक स्वाद न बिगड़े) (जब तक स्वाद न बिगड़े) आटा सर्व प्रकार 7 दिन 5 दिन मसाले पीसे हुए 7 दिन 5 दिन नमक पिसा हुआ 2 घड़ी 2 घड़ी मसाला मिला दें तो 6 घंटे 6 घंटे खिचड़ी, कढ़ी, तरकारी 2 पहर 2 पहर अधिक जल वाले पदार्थ 4 पहर 4 पहर जैसे-रोटी, पूरी, हलवा आदि। मौयन वाले पकवान 8 पहर 8 पहर बिना पानी के पकवान 7 दिन 5 दिन मीठे पदार्थ मिला दही 2 घड़ी 2 घड़ी 16.| गुड़ मिला दही व छाछ (सर्वथा अभक्ष्य है।) 3 दिन 3 दिन 2 घड़ी 6 घंटे 2 पहर 4 पहर 13. 8 पहर 3 दिन 2 घड़ी दान की महिमा-जो मनुष्य लक्ष्मी का संचय करके पृथ्वी के गहरे तल में उसे गाड़ देता है, वह मनुष्य उस लक्ष्मी को पत्थर के समान कर देता है। इसके विपरीत जो मनुष्य अपनी बढ़ती हुई लक्ष्मी को सर्वदा धर्म के कामों में लगा देता है, उसकी लक्ष्मी सदा सफल रहती है। पंडितजन भी उसकी प्रशंसा करते हैं। इस प्रकार लक्ष्मी को अनित्य जानकर जो उसे निर्धन. धर्मात्म व्यक्तियों को देता है और बदले में प्रत्यपकार की बाँछा नहीं करता उसी का जीवन सफल है। इस प्रकार दान देने से जीवन और धन सफल हो जाता है। अभयदान के सन्दर्भ में आचार्य शुभचन्द्र कहते हैं कि - 4234

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