Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

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Page 440
________________ मुनि हुआ कंस एक समय की बात है कि राजा उग्रसेन ने घोषणा करवा दी कि नगर में कोई भी साधु आवे तो मेरे अतिरिक्त कोई भी चौका नहीं लगायेगा। कुछ समय बाद नगर में एक दिगम्बर मुनिराज, एक महीने के उपवासी, आहार चर्या को आते हैं। उग्रसेन इस समय पर चौका नहीं लगा पाता। राजा उग्रसेन आहार चर्या का समय भूल जाता है। मुनिराज वापिस जंगल को लौट जाते हैं। ___अब फिर एक माह बाद आहार चर्या को नगर में प्रवेश करते हैं। दो माह उपवासी मुनिराज के लिए नगरवासी राजा के डर से फिर कोई चौका नहीं लगाते, और इधर राजा उग्रसेन फिर समय पर चौका लगाना भूल जाते हैं। मुनिराज नगर से फिर वापिस निराहार चले जाते हैं। अब पुनः और एक माह के उपवास के बाद अर्थात् तीन महीने के उपवासी मुनिराज आहार चर्या के लिए नगर में भ्रमण करते हैं। अब मुनिराज का शरीर अति दुर्बल हो चुका है। तमाम शरीर की नसें दिख रही हैं। नगर में चर्चा होने लगती है कि राजा न तो समय पर स्वयं चौका लगाता है और न हमें लगाने देता है। नगरवासी मुनिराज की स्थिति देख बहुत दुखित होते हैं। राजा उग्रसेन अब भी चौका लगाना भूल जाता है। मुनिराज वापिस जंगल लौटने लगते हैं तब नगरवासी चर्चा कर रहे हैं कि यह राजा बहुत बड़ा पापी है। न समय चौका लगाता है और न ही किसी को लगाने देता है। ये शब्द मुनिराज सुन लेते हैं। सुनकर उन्हें आर्तध्यान हो जाता हैं वह वहीं पर मूर्छित होकर गिर पड़ते हैं। निदान बाँध लेते हैं कि मैं इस राजा से बदला लूंगा। यह सोचते हुए मुनिराज का मरण हो जाता है। अब यह मुनिराज का जीव राजा उग्रसेन के घर कंस के रूप में जन्म लेता है और युवा हो पिता को जेल में बन्द कर देता है। इस प्रकार आहारदाता को आहारचर्या का समय, भोजन को समय से बनाना आदि का ध्यान रखना चाहिए। शद्धि-भाव पर आहारदान की आधारशिला स्थापित है। आहार दाता को अतिथि के लिए भोजन बनाने से लेकर, आहार करवाने तक अपने मन को किसी विकल्प में नहीं उलझाना चाहिए। क्योंकि भावों का प्रभाव भी आसपास के वातावरण को प्रभावित करता है। शुद्ध भावों से बनाया गया और दिया गया भोजन आपके पुण्य में और अतिथि के संयम में अकथनीय वृद्धि कर देता है। वास्तव में दान भावों से होता है, पैसे से नहीं। शुद्ध मन से थोड़ा-सा भी दान दिया जावे तो वह अधिक फल देने वाला होता है। कहा भी है कि - - 421

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