Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

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Page 418
________________ 1. साधारण वनस्पति-जिन जीवों के आहार, आयु, श्वासोच्छ्वास और काय साधारण अर्थात् समान और एक होते हैं, उन्हें साधारण वनस्पति कहते हैं। दूसरे शब्दों में एक शरीर के कई जीव भी होते हैं उन्हें साधारण वनस्पति या निगोद कहते हैं। यह भी दो प्रकार के होते हैं-1. नित्य निगोद और 2. इतर निगोद। उदाहरण-समस्त जमीकन्द (आलू, गाजर, मूली, अरबी, अदरक आदि) साधारण वनस्पति को व्रती श्रावक नहीं लेता, क्योंकि इसको खाने में अनन्तानन्त जीवों के घात का दोष लगता है। 2. प्रत्येक वनस्पति-जिस वनस्पति का स्वामी एक ही जीव होता है उसे प्रत्येक वनस्पति कहते हैं। उदाहरण-जो वनस्पतियाँ जमीन से ऊपर उगती है, जैसे-तोरी, घीया (लौकी), मटर, मिर्च, नींबू, आँवला आदि। प्रत्येक वनस्पति दो प्रकार की होती है। अ. सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति-जिस प्रत्येक वनस्पति के आश्रय अनेक साधारण वनस्पति शरीर होते हैं, उसे सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते हैं। जैसे-कच्ची लौकी, तथा कच्ची तोरी, कच्चे टिन्डे, पत्तेदार वनस्पति, कच्चे आम आदि। ब. अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति-जिस प्रत्येक वनस्पति के आश्रय में कोई भी साधारण वनस्पति शरीर नहीं होते हैं, उसे अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते हैं। जैसे-पकी लौकी. पकी तोरी, पकी ककड़ी, पके टिण्डे, पके खीरे आदि। वनस्पति प्रत्येक वनस्पति (एक शरीर में एक जीव) साधारण वनस्पति (निगोद) (एक शरीर के कई जीव जैसे-समस्त जमींकद नित्य निगोद . इतर निगोद सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जैसेकच्ची रूयेदार तौरी, पक्को तोरी, लौकी, आदि लौकी तथा पत्तेदार वनस्पति == - = 3000 399

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