Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

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Page 382
________________ ही कमाकर सबको पालते-पोसते हैं। यों सेठ उन्हें रोज समझाता, पर पुत्र और उसकी बहू के समझ में कुछ न आता। __एक दिन सेठ अपने कमाऊ पुत्र से कहता है-'अच्छा बेटे तुम अलग हो जाना, पर एक बार तुम सब भाई मिलकर मेरे साथ पूरे परिवार सहित सब जगह की तीर्थयात्राएँ कर लो, क्योंकि पता नहीं कब आप लोग एक-दूसरे से अलग हो जाओ। फिर तीर्थयात्रा एक साथ करने का मौका मिले या न मिले।' कमाऊ बेटा तैयार हो जाता है और सबका तीर्थयात्रा का कार्यक्रम बन जाता है। ____तीर्थयात्रा करते हुए एक दिन सेठ अपने कमाऊ पुत्र को दस रुपये देता है और कहता है कि बेटा जाओ, बाजार से भोजन सामग्री खरीद लाओ। कमाऊ पुत्र बाजार से भोजन सामग्री लेने चल देता है। रास्ते में विचारता है कि दस रुपये की भोजन सामग्री में क्या होगा, कुछ पहले कमाकर, भोजन सामग्री खरीदनी चाहिए। कमाऊ बेटा दस रुपये का माल खरीदकर ग्यारह रुपये में बेच देता है। अब भोजन सामग्री खरीदकर घर लौटता है। सेठ जी को घर पर वह सब बात बता देता है कि अधिक सामग्री मैं कैसे लाया। घर पर भोजन बनता है और सब प्रसन्तापूर्वक खा-पीकर तीर्थयात्रा का यह दिन व्यतीत कर लेते हैं। ___ अब दूसरे दिन सेठ अपने जुआरी बेटे से कहता है कि-'बेटा! ये लो दस रुपये, आज तुम्हारी बारी है। तुम बाजार से जाकर इसकी भोजन सामग्री ले आओ।' बेटा दस रुपये लेकर भोजन सामग्री लेने बाजार चला जाता है। जब वह बाजार पहुँचता है तो, एक जगह देखता है कि जुआरियों का अड्डा लगा हुआ है। यह पुत्र तुरन्त वहाँ पहुँच जाता है और अपने स्वभाव के अनुसार एक दाँव में पूरे दस रुपये लगा देता है। भाग्य की बात कि वह दाँव जीत जाता है, और दस के बीस रुपये हो जाते हैं। अब यह बीस रुपये की भोजन सामग्री खरीदता है और अपनी धर्मशाला लौट जाता है। आज पहले दिन की अपेक्षा दूनी भोजन सामग्री होने से सभी बहुत अच्छी तरह से खाते-पीते हैं और अपने इस दिन को भी व्यतीत कर देते हैं। यह देख कमाऊ बेटा बहुत शर्मिन्दा होता है। ____ आज तीसरे दिन सेठ अपने अन्धे बेटे को दस रुपये देकर बाजार से भोजन सामग्री लाने को कहता है। बेटा तो अन्धा था, क्या करे, सो पत्नी को साथ ले, जो उसे लकड़ी से रास्ता सुझाती, दोनों बाजार भोजन सामग्री लेने चल पड़ते हैं। अब क्या होता है कि रास्ते में एक जगह इस अन्धे की ठोकर पत्थर से लग जाती है। अन्धा यह विचारते हुए कि इससे पहले भी कई अन्धों को इस पत्थर से ठोकर लगी होगी, वह उसे बीच रास्ते से हट देता है। भाग्य की बात है कि उस पत्थर के नीचे एक गडढा था जिसमें अशर्फियों से भरा एक घडा रखा था। यह अन्धे की पत्नी देख लेती है। अब क्या था, कुछ अशर्फियों से वह बहुत-सी भोजन सामग्री - - 359 --

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