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सब के सब बाहर ही से लौटने लगते हैं। भीतर ही नहीं जा सके। छोटे पुत्र का कमरा खाली देखकर सब चिन्तित हो जाते हैं। वे सोचते हैं राज्य लेनेका, कारोबार सँभालने का इसका विचार नहीं है। राजा ने कमरे के भीतर प्रवेश किया और राजकुमार से पूंछा यह कमरा तो खाली है। राजकुमार ने सहज भाव से मुस्कराते हुए कहा - पिताजी आप जरा ध्यान से देखिए कमरा भरा हुआ है। वे सब राजकुमार की ओर विस्मय से देख रहे थे। छोटे पुत्र ने कमरे के सब दीपक रोशन कर दिये। वे सब देखकर अवाक् रह गये, कमरा पूर्ण प्रकाश भर गया था। कम खर्च हुआ, थोड़े में ही काम हो गया किन्तु कमरे का प्रत्येक स्थान प्रकाश मण्डित हो गया था। यह आम अनुभव है कि जब दीपक घर में जलता है तब मात्र घर में ही प्रकाश नहीं होता बल्कि द्वार, खिडकियों, झरोखों से प्रकाश बाहर भी जाता है। घर में गन्दगी एकत्रित होती है तो दुर्गन्ध बाहर भी पहुंचती है। छोटे राजकुमार के बुद्धि-चातुर्य पर राजा बहुत प्रसन्न होता है और उसके नाम राज्य की घोषणा कर देता है। छोटा राजकुमार जीतने के बाद भी हार का अनुभव करता है। वह सोचता है कि कमरे को प्रकाशित करने पर जब राज्य मिल सकता है, तब यदि मैं अन्तर आत्मा का प्रकाश करूँ तो क्या नहीं मिलेगा, राज्य भी एक कमरा है। जब यह कमरा प्रकाशित हो सकता है तो मेरी आत्मा भी प्रकाशित हो सकती है। वह निर्णय लेता है कि अब जीवन को आलोक से भरना है। जीवन की प्यास तप, त्याग और संयम से ही पूर्ण होगी। अतः उसने राज्य को स्वीकार नहीं किया और जैनेश्वरी दीक्षा लेकर वन की ओर चला गया।
आत्मा के प्रति झुकने की कला छोटे राजकुमार ने कहाँ से सीखी थी कहीं से नहीं वह केवल उसकी अपनी श्रद्धा का फल था। उसने साधु की बात का श्रद्धान किया उनके प्रति अपनी श्रद्धा को अडिग रखा तभी उसके जीवन में यह महान घटना घटी थी। अतः संसार का कोई भी कार्य बिना श्रद्धान के नहीं होता अतः आत्मा की प्राप्ति भी बिना श्रद्धा के संभव नहीं है।
आत्मज्ञान, स्वसंवेदन का पुरुषार्थ जीव को समय रहते कर लेना चाहिए, अन्यथा शरीर की शक्ति क्षीण हो जाने पर यह संभव नहीं हो पाता। इसको पं० बनारसी दासने अपने निम्न सवैये में इस प्रकार स्पष्ट किया है
जौलौं देह तेरी काडू रोग सौं न घेरी जौ लों, जरा नाहिं नेरी जासौं पराधीन परि है। जौ लौं जमनाया वैरी देय न दमामा जौलौं, मानै कान रामा बुद्धि जाइ ना बिगरि है । तौलौं मित्र मेरे निज कार ज सँवार लेरे, पौरुष थकेंगे फेर पीछे कहा करि है। अहो आग ओये जब झौपरी जरन लागी, कुआ के खुदाये तब कौन काज सरि है।
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