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कुछ दिनों के बाद एक मुनिराज विहार करते हुए इसी नगरी की ओर आते हैं। नगर से बाहर लोगों ने बताया कि इस नगर में 500 मुनि घानी में पेरे जा चुके हैं, अत: इस दंडक नगरी में प्रवेश न करें, आपके साथ भी यही किया जावेगा। इन मुनिराज ने यह सुन कर समता छोड़ दी, क्रोध आ गया, बायें हाथ से बिलाव के आकार का अग्निमय पुतला निकलता है और सम्पूर्ण दण्डक नगर को राजा-रानी सहित भस्म कर डालता है। लौटकर यह पुतला मुनिराज को भी भस्म कर देता है। राजा-रानी और मुनिराज सभी नरक को चले जाते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि समता धारण से ही कल्याण है और कषायों के कारण अधोगति में घूमना पड़ता है। ____ आधुनिक युग के समताधारी वीतरागी दिगम्बर संत-वर्तमान के महान् तपस्वी सन्त चारित्र चक्रवर्ती परम पूज्य आचार्यश्रीशान्तिसागर जी महाराज हुए हैं। उनकी अगाध विद्वत्ता, कठोर तपश्चर्या, प्रगाढ़ धर्मश्रद्धा, आदर्श चारित्र और अनुपम त्याग से धर्म की यथार्थ ज्योति प्रज्वलित हुई है। वे अटूट समताधारी वीतरागी दिगम्बर सन्त थे। उन्होंने प्रायः विच्छिन्न मुनि परम्परा का पुन: उद्धार करके उसे जीवन्त किया उनके जीवन में समता कूट-कूट कर भरी थी, यह निम्न दृष्टान्त से स्पष्ट हो जाता है
समता की प्रतिमूर्ति आचार्यश्री शान्तिसागर जी आचार्यश्री शान्तिसागर जी (दक्षिण) अपराह्न में किसी एक जिनमन्दिर में सामायिक करने की तैयारी कर रहे थे। मन्दिर का पुजारी अपना काम समाप्तकर दीपक जला कर, मन्दिर के द्वार बन्द कर, अपने घर चला जाता है। मुनिराज ध्यान में बैठ जाते हैं। पुजारी घर पर जाकर अन्य कार्यों से निवृत्त होकर सो जाता है।
इधर जिनमन्दिर में जब पुजारी ने दीपक जलाया तो दीपक से कुछ घी फर्श पर गिर जाता है। इस घी पर लाखों-लाख चीटियां आ जाती हैं और वहाँ ध्यानस्थ मुनिराज के गुप्तांगों पर चिपट जाती हैं। महाराज सामायिक में उतर चुके हैं। अपने आत्मा द्वारा अपने आत्मा में समाहित हैं, मग्न है। शरीर अर्थात् 'पर' वस्तु को 'पर' जान रहे हैं, अपने आत्मा को, स्व को स्व अनुभव कर रहे हैं।
इधर पुजारी को घर पर स्वप्न आता है, कोई कह रहा है कि "जाओ मन्दिर में, महाराज पर चींटियों का आक्रमण हो चुका है, उसे दूर करो"। पुजारी की नींद खुलती है, वह तुरन्त मन्दिर आता है, मन्दिर खोलता है तो देखता क्या है कि, गुप्तांगों से रुधिर बह रहा है, महाराज निश्चल ध्यान में मग्न हैं. चीटियां जा रही हैं उन्हें छोडकर, कछ करने को शेष नहीं है। इस प्रकार हम देखते हैं कि महा समता के धारी मुनिराज, आ. शान्तिसागर महाराज (दक्षिण) सामायिक से च्युत नहीं हुए, जो यह सिद्ध करता है कि आज के इस आधुनिक काल में भी वीतरागी दिगम्बर संत, समता के धारी मनिराज विद्यमान हैं।
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